पाल बालक ही थे—उन्हें पढ़ने का शौक अधिक था । शेष दो पुत्र नरेन्द्रपाल और यशपाल अभी शिशु ही थे। प्रातःकाल उठते ही चौधरी ने हाथ में लाठी लेकर एक बार सब डेरों में चक्कर लगाया। प्रत्येक से उन्होंने उसकी आवश्यकताएँ पूछी और यथा सम्भव उनकी पूर्ति की। फिर जाजम पर आकर बैठे । सेवाराम हुक्का भर कर ले आया और अदब से एक ओर खड़ा हो गया। गुरुराम पुरोहित अपना तमाखू का बटुअा लेकर आ पहुँचे । मसनद से ज़रा हट कर उन्होंने गुरुराम को पास ही आसन दिया। फिर सेवाराम की ओर देख कर कहा-"रामपाल कहाँ गया है ?" “घूमने गए हैं। दो घण्टे से भी अधिक हो गया । बस, अब आते ही होंगे।" "अकेले ही गए हैं, या कोई साथ भी है ?" "अकेले ही हैं।" "यह तो ठीक नहीं किया, अनजान जगह है । खैर, तू जरा देख दिवान हिकमतराय पूजा से उठे कि नहीं, उठ गए हों तो उन्हें बुला ला।" सेवाराम चला गया और थोड़ी ही देर में हिकमतराय को साथ ले आया । साँवला रंग, दुबले-पतले और लम्बे । मुंशियाना फैशन, सफेद तराशी हुई खसखासी डाढ़ी, नाक पर चश्मा, पैर में चुस्त पाजामा । आते ही उन्होंने झुक कर चौधरी को सलाम किया । और बग़ल में हट कर बैठ गए। चौधरी ने सहज मुस्कान होठों पर ला कर कहा-"किसी को बस्ती में भेजा है या नहीं। रसद तो सब चुक गई होगी। उसका इन्तजाम तो सब से पहले होना चाहिए।" "जी, बस्ती में आदमी गए हैं। और आज भर के लिए तो हमारे पास रसद है, सिर्फ दूध का बन्दोबस्त करना है।" "हाँ, हाँ, बच्चों के लिए दूध तो आना ही चाहिए।"
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६०
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