पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६१

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"मैंने आस-पास के गाँवों में दो सवार दूध के लिए भेज दिए हैं। बस्ती से भी दूध जितना मिले ले आने को कह दिया है।" "इससे तो काम चलेगा नहीं, कुछ गाय-भैंस खरीद ही लो।" “जी, आज डेरा ठीक बैठ जाए तो खाने-पीने से निपट कर मुखिया जी को आस-पास के गाँवों में भेज दूंगा। लेकिन जानवर इस जमीन में बहुत मंहगे हैं।" "हो सकता है, यह पंजाब की भूमि थोड़े ही है। क्या किसी से पूछा था ?" "जी हाँ, अभी एक बैलों की जोड़ी जा रही थी। पूछा तो कहा- पच्चीस रुपये की है । फिर, हमारे पंजाब जैसे बैल थोड़े ही हैं।" "तो दीवानजी, मुखियाजी से कह देना । रुपये का मुंह न देखें। अच्छी नसल की दस-बारह दुधार गाएँ और दस-बारह भैंसें खरीद ही लें।" दीवान हिकमतराय ने गम्भीरता से कहा-"बहुत अच्छा ।" इतना कह वे चले गए। उसी समय चौधरी का बेटा रामपालसिंह आ गया । घोड़ा साईस के हवाले करके वह सीधा जाजम पर पिता के सामने बैठ गया। पिता के उसने पैर छुए और गुरुराम को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया । फिर कहा--"दद्दा, यहाँ तो मराठे छा रहे हैं ।" चौधरी के माथे पर बल पड़ गए। उन्होंने पूछा-"कोई बड़ा सरदार है या लुटेरे ही हैं।" "भाऊ हैं, भाऊ । मुक्तसर से बेगमाबाद तक मराठे छाए हुए हैं।" "भाऊ हैं ? भाऊ क्या अभी यही मुक़ीम हैं ?" “यहीं हैं, उनके साथ सुना है, बीस हजार मराठे हैं। सुना होल्कर सहारनपुर में बैठे हैं।" चौधरी कुछ देर मौन बैठे रहे । उनका मुख गम्भीर हो गया। उन्होंने हुक्के में दो-तीन कश लगाए । इतने ही में जो लोगै बस्ती में राशन-रसद ६४