पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६६

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बन्दोबस्त हो जायगा। रसद लुटने की तुम चिन्ता न करो। मैं इसका बन्दोबस्त कर लूंगा।" "तो तुम अफियाँ लाए हो ?" "शाम तक प्राजाएँगी. और रसद रात में पहुँच जायगी।" "अच्छी बात है । रुपया लेकर तुम्हीं पाओगे ?" "नहीं, हमारे कारिन्दे दीवान हिकमतराय पाएँगे । भरोसे के आदमी हैं।" "चौधरी क्या तीर्थ यात्रा को निकले हैं ?" "कुछ ऐसा ही इरादा है।" "बड़ा खराब वक्त है भाई, तुमने सुना होगा कि अंग्रेज़ कोयल का किला दखल किए पड़े हैं। अब होल्कर के पाँव उखड़े चाहें या चाहे जो हो, पर भई, इन लुटेरे मराठों से तो ये टोपी वाले अच्छे हैं ।" "काहे बात में अच्छे हैं साहू ।" "नक़द रुपया देकर माल लेते हैं। बात जो कहते हैं उसे निभाते हैं।" "उनसे भी कुछ सौदा सुलक करते हो साहू ?" "भइया, हमारा तो यह धंधा ही है। पर इन लुटेरे मराठों के भय से सब मामला बिगड़ा पड़ा है। देखा होगा, बस्ती में चिड़िया का पूत भी नहीं है । सब भाग गए।" "बस्ती तो उजाड़ पड़ी है।" "सुना है दिल्ली में अंग्रेज़ों का दखल हो गया है । वहाँ सब बाज़ार खुले रहते हैं । लोग बाग बेफिक्र अपना धन्धा चलाते हैं ।" “मैंने तो देखा नहीं साहू। हम लोग तो सीधे पंजाब से आ रहे हैं।" "चौधरी से मेरी जुहार कहना । उनसे कहना-उनकी कृपा मैं भूला नहीं हूँ। रसद का प्रबन्ध हो जायगा । पर यह बात फूटनी नहीं चाहिए । नहीं तो मराठे मेरा घर बार लूट कर उस में आग लगा देंगे।" "नहीं, सब बात हमारे-तुम्हारे बीच ही रहेगी साहू।"