पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामपाल भीतर घुस गया । उस व्यक्ति ने खिड़की बन्द कर ताला जड़ दिया। एक सूने और अंधेरे दालान में होकर वे एक गलियारे में पहुँचे । और उसको लाँघ कर वैसे ही दूसरे दालान में । वहाँ देखा- बसेसर साहू-गद्दी पर बैठा है । नंगी तलवार उसके आगे गद्दी पर रखी है। वह क्षण भर गद्दी पर चुपचाप बैठा संदेह भरी नज़र से रामपाल की ओर देखता रहा। फिर कहा-"बैठ जागो और अपना मतलब कहो । तुमने कहा था कि तुम चौधरी प्राणनाथ के आदमी हो।" "मैं चौधरी का बड़ा बेटा हूँ।" साहू ने ध्यान से रामपाल को देखा । फिर पूछा---मैं तो तुम्हें जानता नहीं हूँ, परन्तु चौधरी कहाँ हैं ?" “यहीं मुक्तेसर में हैं।" "मुक्तसर में ?" उसके नेत्रों में आश्चर्य फैल गया । रामपाल ने कहा--"उन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।" "किस लिए।" "हमें रसद चाहिए । हमारे साथ तीन सौ आदमी और कुछ जानवर हैं । मुक्तसर में हम अभी कुछ दिन क़याम करेंगे । तब तक के लिए हमें रसद-पानी चाहिए।" "लेकिन तुम्हें मालूम है कि यहाँ-मराठे छा रहे हैं । रसद तो एक और रही-घास का तिनका तो उन्होंने छोड़ा नहीं है।" "पर साहू, दद्दा ने कहा है कि साहू अपने ही आदमी हैं, वे रसद का प्रबन्ध कर देंगे।" "चौधरी के मेरे ऊपर बहुत अहसान हैं, और तुम कहते हो कि तुम उनके लड़के हो। देलूंगा, यदि कुछ बन्दोबस्त हो सका तो, लेकिन भाव बहुत मंहगे हैं। तथा रुपया अशर्फियों में पेशगी देना होगा। दूसरी बात यह है कि रसद राह में लुट जाय तो मैं इसका जिम्मेदार नहीं हूँ।" "साहू, हमारा तुम्हारा घर दो थोड़े ही हैं। जैसा कहोगे वही