पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६८

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"तो भाई, जितनी जिन्स हो खरीद लो। रुपया प्रशफियों में पेशगी दे दो। हाँ, कडुआ तेल भी तो चाहिए।" "कडुआ तेल रुपए का पच्चीस सेर देता है।" "चौधरी ने हँस कर कहा-"लूट है लूट । लेकिन अपनी गर्ज है। ले लो भाई।" "लेकिन लूट का भी डर है।" "उसका भी बन्दोबस्त करूँगा। तू भाया अशफियाँ लेकर अभी दीवान हिकमतराय को साहू के पास भेज दे। सब जिन्स रात को प्रायँगी । कुछ छकड़े और गधे तो अपने पास हैं। कुछ साहू बन्दोबस्त कर देगा।" दीवान हिकमतराय को सब आवश्यक बातें समझा कर चौधरी और रामपाल सिंह ने भोजन किया। फिर वस्त्र और शस्त्र धारण किए, और पुत्र सहित घोड़े पर सवार हो भाऊ को मुजरा करने चल दिए । सेवा- राम नाई भी तलवार बाँध टांघन पर सवार हो चौधरी के पीछे-पीछे चला। मुक्तसर पर दखल भाऊ की मुलाकात का परिणाम अच्छा हुआ । चौधरी की यशो- गाथा और उसके प्रभाव की बात भाऊ सुन चुका था। इस समय पंजाब की अवस्था पर ही भाऊ की सारी आशाएँ अवलम्बित थीं। वह चाहता था कि किसी तरह अंग्रेजों का सिखों से युद्ध छिड़ जाए। उस में अंग्रेज़ जीतें या हारें--उनकी शक्ति बिखर जायगी और मराठों को सांस लेने की फुर्सत मिल जायगी। उसने बड़े चाव से चौधरी के मुँह से पंजाब की भीतरी दुरवस्था का हाल सुना, सुन कर आश्वस्त हुआ। पर रणजीत- सिंह के उत्थान से प्रभावित-सा मालूम हुआ । चौधरी ने अपनी वाक्- चातुरी, शालीनता, गम्भीरता और सौजन्य से भाऊ को प्रसन्न कर लिया। सब बात कह कर चौधरी ने कहा -"अब मैं आध सेर आटे के