पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६९

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लिए पुत्र सहित आप की सेवा में आया हूँ।" भाऊ ने तुरन्त चौधरी को मुक्तसर दखल करने की अनुमति दे दी। और कहा-"चौधरी, आसपास के जितने गाँव तुम चाहो दखल कर लो।" उसने यह भी कहा-"तुम्हारा यह बेटा आज से मेरा भी बेटा हुआ-इसे मैं पाँच-सौ सवारों का नायक बनाता हूँ । इन्हीं सवारों को ले कर पहले तुम आसपास के गाँवों में अपनी दुहाई फेर दो और बन्दोबस्त करो। मुक्तसर में अभी मैं मुक़ीम हूँ । अंग्रेजों ने मेरठ में और अम्बाले में छावनियाँ बनाई हैं । इधर कोयल तक उनकी फौजें बढ़ आई हैं। नहीं जानता -द्वाबे पर अब अंग्रेजों का प्रभाव कायम रहेगा या नहीं । हमें तो अब केवल होल्कर का ही सहारा है । हर हालत में हमें तैयार रहना है । न जाने कब अंग्रेजों से छिड़ जाय । इसी से यहाँ मैं एक किला बनवाना ज़रूरी समझता हूँ। यह काम मैं चौधरी, तुम्हारे ही सुपुर्द करता हूँ। किला छह महीने के भीतर ही तैयार हो जाना च हिए। इसके अतिरिक्त एक बात और । पंजाब की ओर से बेखबर न रहना । वहाँ का राई-रत्ती हाल मुझे देते रहो । सब कुछ तुम्हें मालूम होता रहे-ऐसा प्रबन्ध कर लो।" चौधरी ने भाऊ का जय जयकार किया। और कहा-"श्रीमन्त, मैंने पैतालीस गाँव पीछे छोड़े हैं । बस, इतने गाँव श्रीमन्त अपनी कलम से सेवक को बख्श दें, और बादशाह से उनकी सनद दिला दें।" भाऊ ने चौधरी को इतमीनान दिलाते हुए कहा--- "तुम गाँव दखल करो चौधरी। और मुल्क में अमन कायम करो। लोग गाँवों में बसें-खेती-क्यारी करें, सब कारोबार व्यवहार जारी हो-ऐसा करो। हम मराठों से वे डर गए हैं । और इन टोपी वालों को अपना हितु समझते हैं । सो डर की बात नहीं है । बादशाह का बल हमें कायम रखना है, और इन फ़िरंगियों को मार भगाना है । यह काम मुल्क में अमन होने ही से ठीक होगा। हमें पूरी रसद भी अब चौधरी तुम्हीं को मुहैया करनी होगी। यहाँ के से कुछ भी तो सहयोग नहीं करते। अब तुम्हारे आने से मैं आश्वस्त हुआ।" लोग हम