सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फिर भी अंग्रेज़ भरतपुर को मलियामेट करने पर तुले बैठे थे । अब होल्कर के भरतपुर पहुंचने और मथुरा दखल करने से बौखला कर अंग्रेजों ने भरतपुर पर चढ़ाई कर दी थी। पर युद्ध बीच में ही रुक गया और सन्धि हो गई–पर होल्कर का प्रश्न ज्यों का त्यों रह गया। वह जब मथुरा दखल कर रहा था तभी उसने एक बार भरतपुर-सिंधिया और भोंसले से मिल कर एक संयुक्त मोर्चा अंग्रेजों के विरुद्ध बनाने का प्रयत्न किया था। परन्तु जनरल लेक के ताबड़तोड़ अलीगढ़ तक पहुँच जाने और कोयल के किले को दखल कर लेने के कारण उसे दिल्ली की ओर भागना पड़ा था। पर दिल्ली पर भी उस समय अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और बादशाह को अपने प्रभाव में गांस लिया, इस से खीझ कर होल्कर सहारनपुर में बैठ कर अपनी बिखरी शक्ति का संचय कर रहा था। पूर्व से अग्रेज़ एकाएक न टूट पड़ें-इस भय से उसने भाऊ को मुक्तसर में मुकीम कर रखा था। वह चाहता था कि पंजाब में उदीय- मान सिख सरदार रणजीतसिंह उससे मिल जाए, और सहारनपुर के नवाब बब्बूखाँ और समरू बेगम अपनी पूरी सहायता अंग्रेजों के विपरीत उसे दें। इनके अतिरिक्त रामपुर के पदच्युत नवाब गुलाम मुहम्मद खाँ से भी उसे बहुत आशा थी। इस समय गवर्नर जनरल वेल्ज़ली के हाथ कम्पनी बहादुर का बाग- डोर थी। वह चाहता था कि भारत में एक अखण्ड साम्राज्य की स्थापना हो जाय । वह भारत में किसी राजा और नवाब को स्वतन्त्र नहीं देखना चाहता था । परन्तु वह कोई बड़ा यद्ध इस समय छेड़ना नहीं चाहता था । कम्पनी की आर्थिक अवस्था बहुत खराब हो चली थी। इसके अतिरिक्त यह मौसम भी युद्ध के अनुकूल न था। वह युद्ध को टालता और तैयारी करता चला जा रहा था । उसे लगातार देशी नरेशों से युद्ध करने पड़े थे । और बेशुमार बड़ी-बड़ी रिश्वतें देनी पड़ी थीं। इससे कम्पनी कर्जे से दब रही थी। फिर भी वेल्ज़ली कर्जे की परवाह नं करके कर्जे पर कर्जा लिए जाता था । वह रुपए के बल पर ही मुश्किल ७४.