पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७०

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सफल और कृत-कृत्य हो, सब बातें भाऊ की स्वीकार कर और जुहार करके चौधरी डेरे पर आए । उन्होंने तुरन्त मुक्तेसर के सूने कस्बे को दखल कर लिया। उसके प्रादमी यथायोग्य मकानों में बस गए। इस के बाद उन्होंने चालीस गाँवों में अपने अदल की दुहाई फेरी । फिर गाँव- गांव जा कर वहाँ के निवासियों को अपने मिष्ठ व्यवहार और सौजन्य से भय रहित किया । धीरे-धीरे भयभीत ग्रामवासी, अपने-अपने घरों में लौट पाए । खेती-क्यारी होने लगी। मराठों का आतंक कम हुआ। मुक्तेसर का क़स्बा भी आबाद हो गया। आसपास के किसानों को दूनी मजदूरी का लालच दे कर चौधरी ने किला बनाना आरम्भ कर दिया । भाऊ चौधरी से सब तरह सन्तुष्ट हो गया ।

चौधरी के जोड़-तोड़ प्राणनाथ चौधरी ने अपने चातुर्य, सौजन्य, मुस्तैदी और प्रामाणिकता से मुक्तेसर और आसपास के जिन चालीस गाँवों पर दखल किया, उन सब की हालत देखते ही देखते बदल गई। उजाड़ मैदानों की जगह हरे- भरे खेत लहलहाने लगे। लोग खुशहाल और निर्भय हो कर अपने-अपने कामों में लग गए । मुक्तेसर की रियासत खूब सम्पन्न हो गई। चौधरी का रुबाब दबदबा अच्छी तरह बैठ गया। भागे हुए लोग अपने घरों को लौट आए । भाऊ को भी चौधरी से बड़ी सहायता मिली। चौधरी के प्रयत्न से बसेसर साह ने भाऊ और होल्कर की रसद से भारी सहायता की । और जब चौधरी ने छह मास से भी कम समय में मुक्तेसर का किला खड़ा कर दिया तो भाऊ प्रसन्न हो गया। उसने होल्कर से चौधरी की भूरी-भूरी प्रशंसा की। इस समय राजनीति के बड़े-बड़े दाव भारत में लग रहे थे। दौलत- राव सिंधिया और भोंसले के युद्ध में भरतपुर के जाट राजा रणजीतसिंह ने देशवासियों के साथ विश्वासघात करके अंग्रेजों का साथ दिया था,