लिए अंग्रेज़ बेगम और उसके द्वारा उत्तर के सब ज़मींदारों और सरदारों को फोड़ने के लिए विस्तृत जाल फैला रहे थे और बड़े-बड़े फंदे रच रहे थे। इसी से इस समय सहारनपुर में होल्कर का बैठे रहना अंग्रेज़ सहन नहीं कर सकते थे। उन्हें भय था कि यदि मराठों के साथ सिख शक्ति मिल गई तो अंग्रेजों को भारी विपत्तियाँ सहन करनी पड़ेंगी। और हकीकत तो यह थी कि यदि वीर सिख उन दिनों मराठों का साथ देते तो उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ ही में अंग्रेजी साम्राज्य की अधकचरी इमारत ढह गई होती। लाहौर में इस समय रणजीतसिंह का सूर्य उदय हो रहा था। वह यद्यपि हैदरअली और शिवाजी के समान अशिक्षित, वीर और युद्ध कला में अत्यन्त निपुण था, पर वह न तो शिवाजी के समान दूरदर्शी और राजनीतिज्ञ था, न हैदरअली के समान प्रचण्ड साहसी। देश प्रेम भी उसका वैसा न था। फिर उसका उदय अंग्रेजों के सहयोग से ही हुआ था। उसे और उसके संगी-साथी सभी सिख सरदारों को यह कह कर अंग्रेजों ने फोड़ना जारी रखा था कि अंग्रेज सरकार आपकी सरपरस्त है और आपको मराठों को कोई खिराज देने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही रिश्वतों और झूठे-सच्चे वादों से सिखों को भरमाया भी गया था । तथा डराया भी जाता था कि यदि वे बलवान अंग्रेज़ सरकार से विरोध करेंगे तो खतरा मोल लेंगे। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की दोस्ती से उन्हें क्या-क्या लाभ हो सकते हैं। इसके बढ़े-चढ़े स-ज़-बाग़ दिखाए जाते थे। फिर मुग़ल बादशाह का पतन उनके सम्मुख था । इस समय भारत के अन्य सब नरेश सबसीडीयरी सन्धि के जाल में फंस चुके थे, केवल सिखों को जानबूझ कर आजाद छोड़ा गया था। इसी में अंग्रेजों का हित था । मराठों के दूसरे युद्ध में रणजीतसिंह और सिख सरदारों ने मराठों के विरुद्ध अंग्रेज़ों का साथ देकर ही बेहद लाभ उठाया था। अंग्रेजों ने केवल यही नहीं, कि रिश्वतों, धमकियों और प्रलोभनों ७७
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