पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७८

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नवाब गुलाम मुहम्मद खाँ श्रीमन्त को सहारा दें तो अभी भी श्रीमन्त की रकाब के साथ डेढ़ लाख तलवारें हैं।" "हज़रत बादशाह सलामत का श्रीमन्त की ओर कैसा रुख है?" “हुजूर, श्रीमन्त की दौड़-धूप का तो सारा दारोमदार ही बादशाह की हस्ती कायम करने पर है। सिंधिया सरकार भी बादशाह सलामत की छत्रछाया में खड़े थे-आप ने तो हज़रत सलामत बादशाह का वह सुखन सुना होगा- माधो जी सिंधिया फ़र्ज़न्द जिगर बन्देमन हस्त मसरूफ़ तलाफ़ीए सितम गारिएमा । “यह तो नमकहराम सैयद रज़ाखाँ की सारी करतूत थी। जिस का मुँह अंग्रेजों ने चाँदी के सिक्कों से भर दिया था ।" "वह तो सिंधिया सरकार के रेजीडेण्ट का एजेन्ट था जो शाही दर्बार में रहता था।" “जी हाँ सरकार । उसी ने तो आस्मान फाड़ डाला । हज़रत सलामत और सिंधिया सरकार के मन फाड़ दिए । सोचिए तो हुजूर, सैयद रज़ा ने झूठी ही आशाओं के सहारे बादशाह सलामत और सिंधिया सरकार में फूट डाल दी। शेरे-दक्कन सुलतान टीपू के साथ विश्वासघात करने के बदले राजकुल को जरा-सा टुकड़ा किसी शर्त पर मिल भी गया, पर सिंधिया के साथ बदसलूकी करने के सिले में हज़रत सलामत बादशाह को क्या मिला ? सिर्फ़ विश्वासघात । ये हज़रत सलामत वही शहनशाहे हिंद शाहे आलम हैं जिन के सामने खड़े हो कर और हाथ पसार कर अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी के अख्तियारात हासिल किए थे। आज दुनिया पर रोशन है कि अंग्रेजों ने तख्ते मुगलिया को चूर-चूर कर दिया । अब बादशाह सलामत अंग्रजों के महज पैन्शनयाफ्ता कैदी हैं । जो अपने ही बाप-दादों के किले में कैद हैं।" चौधरी ने दोनों हाथ पसार कर और आँखों में आँसू भर कर गद्- ८१