पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७७

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"इन बातों से तो यही मालूम होता है ।" "तो सरकार फिर यह लूट-बदअमनी, जुल्म और अन्धेरगर्दी किस लिए है ? यह रिश्वत खोरी का बाजार गर्म क्यों है ? फिर-आज उन का और कल आप का दिन है । हुजूर तो इसी मुल्क की मिट्टी में पैदा हुई हैं। ये अंग्रेज तो परदेसी हैं, जब इन्होंने बादशाह तक से वादा- खिलाफी की है -तब इस बात का क्या ठिकाना कि वे हुजूर और हुजूर जैसी दूसरी हिन्दुस्तानी छोटी-छोटी रियासतों को मलियामेट न कर डालेंगे।" "लेकिन श्रीमन्त से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। क्या आप नहीं जानते कि मराठों को चौथ देते-देते सारे मुल्क का दिवाला निकल गया है।" "फिर भी सरकार, मराठे अपने ही देश की मिट्टी के बने हैं। फिरंगी क्या कम हैं । ये तो सारे देश का खून चूस-चूस कर सात समंदर पार भेज रहे हैं। सारा देश तबाह हो रहा है हुजूर ।" "तो आप क्या समझते हैं कि श्रीमन्त में उन्हें मार-भगाने की शक्ति है ?" "शक्ति तो सरकार, एक में नहीं, सभी के मेल में होती है । आप अच्छी तरह जानती हैं कि अंग्रेजों ने पेशवा, सिंधिया और भोंसले को खत्म कर दिया। मराठा-मण्डल भंग हो गया । अब तो मराठा मण्डल की चार बाकतों में सिर्फ होल्कर सरकार ही तो बचे हैं।" "क्या उनकी ताकत सिंधिया सरकार से बढ़ कर है ?" "हुजूर, आप अगर श्रीमन्त को भरोसा दें, महाराज रणजीतसिंह अपनी तलवार ले कर उन के साथ उठ खड़े हों, तो अभी बिगड़ा क्या है। आप तो जानती ही हैं कि भरतपुर का दर्बार श्रीमन्त के साथ है, सिंधिया और भोंसले भी अभी जिन्दा हैं, सिर्फ परकैच कर डाला गया है उन्हें । आप के एक इशारे से सहारनपुर के नवाब बब्बू खाँ, रामपुर के