"अभी नहीं, सरकार ख्वाबगाह में हैं।" चौधरी ने आश्चर्य से बूढ़े की ओर देखा। यह क्या बात है, अभी एक आदमी कहता है कि हवाखोरी को गए हैं, और यह कहता है कि आरामगाह में हैं। सच बात क्या है ? पर वह बूढ़ा भी एक ओर को चल गया। दूसरे प्रश्न का उसने अवसर ही नहीं दिया। अब और कोई आदमी आए तो पूछा जाय । चौधरी इसी उधेड़-बुन में थे कि एक अंग्रेज़ सवार अहाते में घुस आया। अंग्रेज़ को आता देख वही बूढ़ा दारोगा लपकता हुआ आया । उसने झुक कर सलाम किया- और पूछा-"हुजूर का क्या हुक्म है ?". "अम नवाब से मिलना मांगता अबी।" . "हुजूर, नवाब तो एक दोस्त के यहाँ दावत में तशरीफ़ ले गए हैं। कल जब हुक्म हो-वे कचहरी या दफ्तर में हुजूर से मिल लेंगे।" "कल नेई, अबी। हमज्वाइन्ट मैजिस्ट्रेट है, अबी मिलना माँगता। यू ब्लडी।" इसी समय भीतर जनानी ड्योढ़ी से एक महरी निकली। सुमई रंग, दांतों में मिस्सी, मेंहदी रंगे बाल, मुँह में पान की गिलौरी । सुथना फड़काती हुई। साहब ने उसे डांटकर पूछा-"ए, नवाब अन्दर किया करता ? अम तुम कू हवालाट भेजना मांगता।" महरी दांतों में उंगली दाबती महल में भाग गई । उसने बेगम से हांफते-हांफते कहा-"सरकार दौड़ आई है। कुछ दाल में काला मालूम होता है। अल्लाह खैर करे, एक फ़िरंगी घोड़े पर सवार फाटक घेरे खड़ा है।" बेगम ने सुना तो कांप गई। महरी से कहा-"तो यहां क्या मर रही हैजाकर नवाब को इत्तला कर, ज़रा देखें तो कौन मुत्रा फ़िरंगी सवेरे- सवेरे सिर पर मंडरा रहा है।"
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८२
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