पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८३

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खबर सुनकर नवाब साहेब बाहर पाए, साथ में छुट्टन मियां । सलामें झुकाते । आदाब कहते। साहेब ने कहा-"वेल नवाब, हम भौट डिक हुआ । टुमारा नौकर बड़जाट हाय । अमकू जुठ बोला।" नवाब ने हाथ मलते हुए कहा-“सख्त अफसोस का मुक़ाम है हुजूर। वल्लाह, इन नालायक नौकरों की वजह से मालिक भी बदनाम होते हैं, आप किन्तु साहेब ने बीच ही में बात काट कर कहा- "टुम जल्दी करो नवाब, साहेब कमिश्नर बहादूर अंबी टुम से करेगा।" "तो मैं अभी चला ।" नवाब ने टमटम जुड़वाई और सवार हो साहेब के साथ चल दिए। सब नौकर-चाकर, दारोगा, महरी हक्के-बक्के खड़े के खड़े देखते रह गए । चौधरी भी देखते रहे। किसी से क्या कहें, कुछ समझ में नहीं आया । वे फिर आयेंगे, यह निश्चय करके वहाँ से चल दिए। बाट

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होल्कर के सम्मुख छोटा क़द, किन्तु अत्यन्त सुदृढ़ और मजबूत शरीर, रंग उज्ज्वल- श्याम वर्ण, भव्य मुखाकृति, अचानक किसी बन्दूक के छूट जाने से एक आँख जाती रही थी, फिर भी चेहरे की प्रभावशाली मुद्रा में अन्तर न आया था । ओठों के सम्पुट उसके दृढ़ विश्वास को प्रकट करते थे । और उसके सम्मुख उसकी आज्ञा का उल्लङ्घन करना अशक्य था। यह था वीर- वर जसवन्तराय होल्कर । अपने सब सरदारों से घिरा यह नरश्रेष्ठ इस समय अत्यन्त व्यग्न और अशान्त मुद्रा में टहल रहा था। उसकी कसी हुई मुट्ठी में तलवार की मूठ थी। और उसकी एक मात्र आँख से ज्वाला निकल रही थीं।