पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८९

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में राज्य थे । उन्होंने प्रचण्ड स्वर से होल्कर का जय घोष किया। होल्कर चुपचाप खड़ा ओंठ चबाता रहा । फिर उसने मीर मुन्शी को आज्ञा दी-“लाहौर दरबार को एक खत लिखो- "महाराजा रणजीतसिंह, आप ने एक विपत्तिग्रस्त अतिथि और देश- वासी की ओर धर्म पालन नहीं किया, तो स्मरण रहे, मेरे कुल कायम रहेगा—किन्तु आप के कुल की सत्ता का शीघ्र ही अन्त हो जायगा।" इस समय होल्कर की वाणी काँप रही थी और भावावेश से उस का चेहरा लाल हो रहा था। उसने ऊँची आवाज़ में कहा-"कौन बहादुर यह खत लाहौर दर्बार में ले जायगा।" इस ललकार से सन्नाटा छा गया। चौधरी अब तक चुपचाप खड़े यह सब दृश्य देख रहे थे। अब उन्होंने आगे बढ़ कर कर-वद्ध कहा- "श्रीमन्त, इस सेवक को यह सेवा बजा लाने की प्रतिष्ठा बख्शी जाय ।" "यह कौन है ?" होल्कर ने संदेह से चौधरी की ओर देख कर उङ्गली उठा कर कहा। "श्रीमन्त का एक आ कारी अनुचर," यह कह कर चौधरी ने आगे बढ़ होल्कर को जुहार किया और भाऊ का पत्र उन के हाथ में थमा दिया। पत्र पढ़ कर होल्कर के मुख पर प्रसन्नता लौट आई । उसने निकट- वर्ती सरदार को संकेत से कहा-इसे मेरे पास ले आओ । वह तेज़ी से अपने खीमे में चला गया । और वह सरदार चौधरी को साथ ले तत्काल ही-होल्कर की पेशी में आ हाज़िर हुआ। होल्कर से परामर्श चौधरी ने सब बातें व्योरे बार होल्कर से कह दीं। भाऊ के जवाबी संदेश, बेगम समरू से मुलाक़ात और नवाब बब्बू खाँ से मिलने जा कर ९२