11 भी न मिलने की बात चौधरी ने कह दी। सब बातें सुन कर होल्कर ने कहा- "कह सकते हो बब्बू खाँ इस वक्त कहाँ है ?" "मैं निश्चय पूर्वक कह सकता हूँ-वह दिल्ली गया है । तीन दिन मैं उस के पीछे मारा-मारा फिरा । लेकिन मुलाक़ात नहीं हुई। इन तीन दिनों में अंग्रेज़ों ने उसे एक क्षण के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा। रात- शिकरम में सवार हो कर वह दिल्ली चला गया है। मैंने स्वयं उसे दिल्ली की शिकरम में बैठते देखा है । उस के साथ एक फ़िरंगी भी गया है।" "क्या तुम ने यहाँ के गूजर सरदारों से भी बातचीत की है।" "की है श्रीमन्त, मुझे तो यही प्रतीत होता है-वे सब वक्त पर दगा देंगे। इन में कोई भी तो विश्वासी जीव नहीं हैं । पैसे का लालच तो है ही, फ़िरंगियों का आतंक भी उन पर है।" "तब तो मेरा यहाँ रहना ही बेकार है । लेकिन चौधरी, तुम क्या सचमुच लाहौर मेरा संदेशा ले जायोगे ?" "अवश्य ही श्रीमन्त । मैं महाराज रणजीतसिंह से बात भी करूँगा।" "वह क्या तुम्हारी बात सुनेगा ?" "उस का रुख तो मालूम होगा।" “खैर, तो तुम अभी डाक बैठा कर लाहौर रवाना हो जानो। अपनी यात्रा गुप्त रखो। किन्तु लाहौर में अधिक समय नष्ट न करो, और उल्टा- फेर दिल्ली जानो। समय हो तो बब्बू खाँ के हालचाल-अंग्रेजों की हलचल और बादशाह के दर्बारी हालचाल और बादशाह का रुख देख- भाल कर जितना शीघ्र सम्भव हो, मुझ से भरतपुर में प्रा मिलो। मैं आज ही तीन पहर रात बीते यहाँ से कूच करूँगा।" "श्रीमन्त की आज्ञा का अक्षरक्षः पालन होगा।" "तुम इस वक्त मुझ से कुछ चाहते हो चौधरी ? लेकिन मैं रुपया इस वक्त नहीं दे सकता।" ६३
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