पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१०८

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विख्यात था। यह पाटन राज्य का सन्धिविग्रहिक और कूटमन्त्री था। कहने की आवश्यकता नहीं, कि राज-दरबार में यह उपेक्षित था। परम माहेश्वर गुर्जराधिपति श्रीचामुण्डराय देव को कभी इस विलक्षण मन्त्री की आवश्यकता पड़ती ही न थी। यह पुरुष भी अपने कार्य के लिए कभी राजा की अपेक्षा नहीं करता था। परन्तु देखा जाए तो यह देखने में साधारण पुरुष अकेला ही पाटन के राजतन्त्र का समर्थ प्रवर्तक था। चर के चले जाने पर वह बड़ी देर तक चुपचाप कुछ सोचता रहा। अनेक उत्तेजित कर देने वाले विचार उसे विचलित कर रहे थे। वह सोच रहा था-'आज ही क्या पाटन में प्रलय होगा? परन्तु दामो महता के रहते? यह असंभव है!' एक दृढ़ निश्चय की भावना से उसके ओष्ठ सम्पुटित हो गए, उसने तलवार म्यान में की और घोड़े पर सवार हो तेज़ी से एक ओर को चल दिया।