पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१०७

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दामो महता सब लोगों के वहाँ से चले आने के बाद वह प्रच्छन्न पुरुष भी अपने स्थान से उठा। उसने सावधानी से अपने चारों ओर देखा तथा मुट्ठी में दृढ़ता से तलवार थामकर नि:शब्द चरण रखता हुआ जिधर सब गए थे, उसकी विपरीत दिशा को चला। भग्न मन्दिर से कुछ दूर हटकर एक विशाल शाल्मली वृक्ष था। उसकी सघन छाया काफी दूर तक फैली थी। परन्तु उसके चारों ओर थोड़ी दूर तक खुला मैदान था। उसी वृक्ष की छाया में पहुँचकर उसने चारों ओर देखा। फिर ताली बजाई। एक पुरुष तुरन्त वृक्ष की खोखल से निकलकर उसके निकट आ उपस्थित हुआ। उसे देखते ही उस पुरुष ने कहा, “आनन्द, तू इसी समय सेनापति बालुकाराय के आवास में जा, और उनसे कह, कि सशस्त्र सवारों का एक दस्ता तुरन्त राजमार्ग पर भेज दें, वहाँ एक जैन यति नान्दोल को जा रहा है, उसे निश्चय रूप से बन्दी कर अधीन कर लें। दूसरा एक दस्ता सिद्धस्थल के राजमार्ग पर भेजा जाए, वहाँ एक सामन्त घुड़सवार सिद्धस्थल जा रहा है, उसे भी बन्दी करके अधिकार में कर लें। तथा नगर के सब द्वारों पर प्रहरियों की संख्या बढ़ा दें। और बिना संकेत कोई जन नगर से भीतर तथा भीतर से बाहर न जाने-आने पाए। संकेत-शब्द होगा ‘जयसमुद्र'।" आनन्द प्रणाम करके जाने लगा। परन्तु पूर्व पुरुष ने कहा, “ठहर, सेनापति को दो सौ सैनिकों सहित धवलगृह के दक्षिण-बिलकुल नगर-द्वार के निकट-स्वयं मेरी प्रतीक्षा करनी चाहिए।" आनन्द फिर प्रणाम करके जाने लगा। परन्तु उस पुरुष ने रोककर कहा, “मेरा घोड़ा?" “वहीं है।" “ठीक है, तू जा।” आनन्द चला गया। वह पुरुष वहां से सरस्वती नदी के किनारे-किनारे चलने लगा। एक टूटे मन्दिर के निकट पहुँचकर उसने फिर ताली बजाई। एक पुरुष घोड़ा लेकर आ पूर्व पुरुष ने कहा, “देवसेन, क्या तू खवास बालचन्द्र को पहचानता है?" “अच्छी तरह महाराज!” 'और महाराज की ताम्बूलवाहिनी चम्पकबाला को भी?" "उसे भी महाराज!” "तो तू जैसे भी सम्भव हो, उन दोनों को सूर्योदय से प्रथम ही अपने आधीन कर। और मेरी दूसरी आज्ञा की प्रतीक्षा कर। वे किसी कारणवश इस समय रंग महल से बाहर हैं। और सामने कुछ पुरुष जा रहे हैं, उनमें वे दोनों भी हैं, जैसे सम्भव हो तू उन्हें मार्ग ही में धर। नगर-द्वार पर वे पहुँचने न पाएँ। और इस मामले में शोर भी न मचने पाए।" “जो आज्ञा!” कहकर वह तत्क्षण अन्तर्धान हो गया। इस गूढ़ पुरुष का नाम दामोदर था। पर पाटन में यह दामो महता के ही नाम से 66 उपस्थित हुआ।