पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११०

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“कुमार, तुम्हें यह नहीं मालूम कि आज ही महाराज ने तुम्हें और युवराज को बन्दी करने की आज्ञा दी है।" वल्लभदेव ने कहा, “किस अपराध पर?" "अपराध की क्या बात है युवराज, जैसे जिसने महाराज के कान भर दिए, महाराज को वही सूझ गया। अब तो वे यह विश्वास किए बैठे हैं, कि आप और कुमार मिलकर महाराज को राजच्युत करने की साँठ-गाँठ कर रहे हैं। बस, इसी अपराध पर।" "तो कर नहीं तो डर नहीं! इन बातों से हम भय क्यों करें?" “परन्तु युवराज, अविवेक के सम्मुख विवेक नहीं चलता। जहाँ अविवेक है वहाँ विवेक सावधान रहता है। आपका कार्य यही है कि भविष्य को विचारें और समझें कि गुजरात के महाराज चामुण्डराय नहीं हैं, आप हैं।" "परन्तु अभी तो भीतरी-बाहरी शत्रुओं की बात है न?" “सबसे पहले गज़नी का महमूद। वह आ रहा है। घोघाबापा साका रच चुके। उन्हें पदाक्रान्त कर अब वह सपादलक्ष पहुँचना चाहता है। महाराज धर्मगजदेव उसके सम्मुख होने को तैयार बैठे हैं। परन्तु महमूद के प्रचण्ड सवारों से हमें असावधान न रहना चाहिए। महमूद को मैं देख चुका हूँ, वह साहसी, एकाकी ही सोमनाथ पट्टन छद्मवेश में चला आया था। परन्तु सर्वज्ञ की दृष्टि से छिपा नहीं। दुख इतना ही है कि मेरी तलवार से जीता बच गया।" "तो दुख क्या है कुमार, तुम्हारी शोभा तो उसे सम्मुख युद्ध में धराशायी करने में “वह समय भी आ रहा है। काका जी, अब विचारना यह है कि कहाँ उससे मुठभेड़ की जाय। क्या हम सपादलक्ष चलें, या नान्दोल, या उसे पाटन तक आने दें?" चण्ड शर्मा ने कहा, “कुमार, अब पहले तनिक भीतरी मामलों पर भी दृष्टि दो, तभी इस प्रश्न का हल मिल सकता है। पहले नान्दोल की बात ही विचारो।" "विचारना क्या है, नान्दोल का अनहिल्लराज तो हमारे मामा का बेटा है, सम्बन्धी है। फिर पाटन का सामन्त है।” वल्लभदेव ने कहा। 'और यदि ऐसा न हो?" दामो महता ने तभी कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा। सबने महता को और आश्चर्य से देखा। चण्ड शर्मा ने कहा, “आओ दामो महता, हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं, पर तुम्हारे इस कथन का अभिप्राय क्या है?" “यही, कि नान्दोल के महाराज अनहिल्लराज पाटन की गद्दी के सम्बन्धी और हितैषी नहीं हैं, सामन्त भी नहीं हैं। वे केवल महाराजकुमार दुर्लभदेव के सम्बन्धी हैं।" “यह कैसे दामो?" “महाराज, अभी तक तो हमें विदेशी शत्रुओं और पड़ोस के शत्रुओं से ही निबटना था। अब रक्त के शत्रुओं से निबटना उससे भी अधिक आवश्यक हो गया।" "दामोदर, पहेली न बुझाओ, स्पष्ट कहो।" "तो महाराज, स्पष्ट ही कहता हूँ। राजधानी में गहरा षड्यन्त्र चल रहा है, जिसका सारांश यह है कि महाराज को विष देकर मार डालने तथा आप और कुमार को बन्दी करने