की योजना बना ली गई है। आप यहाँ उपस्थित हैं, इसका भी पता शत्रुओं को चल गया है।" “किन्तु वे शत्रु हैं कौन?" "महारानी दुर्लभदेवी, नान्दोल-राज अनहिल्लराज और जैन यति जिनदत्त सूरि।" “यह तुम क्या कह रहे हो महता?" “उनके सहायक हैं वीकणशाह-गुजरात के महामन्त्री, और महाराज की नाक के बाल बालचन्द खवास।" “परन्तु इसका प्रमाण?" “मेरा वाक्य ही प्रमाण है महाराज, मैं अभी शत्रुओं के गुप्त षड्यन्त्र को आँखों से देखकर आ रहा हूँ।" "तब इसका उपाय?" "उपाय पीछे सोचा जाएगा। अभी जो बात चल रही है, वही हो।" "तो नान्दोल के अनहिल्लराज का विचार पाटन से विद्रोह करने का है?" “यह तो स्पष्ट है महाराज! वे सब मिलकर राजकुमार दुर्लभदेव को पाटन की गद्दी देने की सोच रहे हैं।" "तो सबसे प्रथम यही विषय विचारने योग्य है।" "नहीं महाराज, सबसे प्रथम विचारणीय बात यह है कि गज़नी का अमीर, जो गुजरात को दलित करने आ रहा है उसकी रोक-थाम होनी चाहिए।" “वह किस प्रकार?" “इस प्रकार महाराज, कि पाटन की उत्तर दिशा का दिक्पाल सिन्धुपति हम्मक देव, पश्चिम का अर्बुदेश्वर और पूर्व में नान्दोल, सपादलक्षा" “पर तुम्हारे कथन से तो यह स्पष्ट है कि नान्दोलपति अनहिल्लराज ने पाटन की सत्ता का त्याग कर दिया है।" “और अर्बुदेश्वर धुंधुकराज ने भी।" "अरे ! यह कैसे?" 'उसने मालवराज का आश्रय लिया है।" “किन्तु मालवराज भोज तो आजकल वेदपाट में हैं न?" "हाँ महाराज, धुंधुकराज भी वहीं हैं।" “अरे, तो यह पाटन के विरुद्ध एक त्रिपुटी तैयार हो रही है?" “और उधर गज़नी का महमूद दल-बादल ले पाटन पर धंसा चला आ रहा है। और भी एक बात है!" "क्या?" “कृष्णदेव बालाप्रसाद के पास नान्दोल गया है।" "तो इसका यह अर्थ है कि अर्बुदाचेल की राजधानी में राजा भी नहीं है, युवराज भी नहीं। यह तो असहनीय है अर्बुदपति धुंधुकराज पाटन की सत्ता को अपमानित कर गुजरात के चिरशत्रु भोजराज के आश्रय जाएँ, और उसका पुत्र कृष्णदेव नान्दोल के युवराज के पास रहकर पाटन के विरुद्ध तैयारी करे।"
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