पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११५

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“मेरी नहीं, देव, पाटन की।" 'हाँ-हाँ, पाटन की । पाटन में दामो महता के समान दूसरा कोई व्यक्ति है, जिसे पाटन की प्रतिष्ठा का इतना विचार हो?" "क्यों नहीं, भस्मांकदेव जो हैं।" “परन्तु महता, राजा की तो यह दशा है!" "देव, देवमूर्ति तो पत्थर की होती है। सारी चैतन्य सत्ता तो उसके पुजारी ही में है। पुजारी उसके भोग-ऐश्वर्य का कर्ता-धर्ता है, मैं तो राज्य का मन्त्री हूँ, केवल एक चाकर। परन्तु आप राज्य के मन्त्री ही नहीं, राज्य के मित्र हैं। इस समय पाटन पर संकट है, आपको उठना होगा। आपके अध्ययन में विघ्न पड़े तो पड़े।" “सो उसकी चिन्ता नहीं, पर मुझे करना क्या होगा?" "इस समय रनवास ही अन्तःकलह का केन्द्र बन रहा है उधर अवंतिराज भोज इसी सुअवसर से लाभ उठाकर पाटन की रक्षा-शक्ति को भंग करने के प्रयत्न में हैं। आप जानते ही हैं कि गज़नी का सुलतान गुजरात में फँसा चला आ रहा है। ऐसी दशा में पाटन के दिग्पाल यदि असावधान रहें तो पाटन का सर्वनाश है। चालुक्यों का युग-युग का यश छिन्न-छिन्न हो जाएगा। अर्बुदेश्वर धुंधुकराज और नान्दोल का अनहिल्लराज, दोनों ही मेदपाट में अवन्तिपति के सान्निध्य में बैठे पाटन के विनाश का ताना-बाना बुन रहे हैं। जिनपर रक्षा का भार है, वे शत्रु के सहायक हैं। उधर सिन्धुपति खुल्लमखुल्ला स्वतन्त्र घोषित हो रहा है। उसे उत्तर का दिग्पाल बिना नियुक्त किए, गुर्जर भूमि तो बिना रखाए खेत के समान नष्ट हो जाएगी। परन्तु देव, इस समय पाटन इन घरेलू शत्रुओं पर तलवार नहीं उठाना चाहता। तलवार तो गज़नी के दैत्य के लिए सुरक्षित रहनी चाहिए।" “यह सत्य है, पर कहो, मैं क्या करूं?" “आप मालव जाइए।" “मैं? मैं वहाँ क्या करूँगा?" “पाटन में दूसरा व्यक्ति ऐसा और नहीं, जो मालव के पण्डितों और वारांगनाओं के प्रपंच से बचकर आ सके। आप मालव की प्रकृति के जानकार हैं। मालव राजद्वार में आपका मान भी है। आप उससे लाभ उठाइए। मालवराज पाटन को विष-दृष्टि से देखता है। सिन्धु तक साम्राज्य-विस्तार करने में पाटन ही उसकी बाधा है। उधर पाटन का वह अपराधी भी है, पाटन को उससे वैर लेना है, परन्तु आज नहीं। आज तो उसे रोकना होगा। यह काम आप ही कर सकते हैं देव।" “दामो, यह काम तो तुम्हारे बूते का है।" “मैं ही जाता। पर मैं यदि आज पाटन छोड़ता हूँ तो देव, सत्य जानिए, पाटन भी नहीं, पाटन के महाराज भी नहीं। इसलिए पाटन को मुझ पर छोड़िए। आप मालव जाइए।" भस्मांकदेव विचार में पड़ गए। दामोदर ने धीमे स्वर में कहा, “आप तैलप राज की बहिन, मुंज की विधवा महारानी कुसुमवती को जानते हैं। वह भी आपको बहुत मानती है?" "तो इससे क्या?"