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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११६

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“सब कुछ इसी में हो गया देव, वह बड़े तेज़ स्वभाव की स्त्री हैं। तैलपराज ने अपने हाथ से महाराज मुंज का शिरच्छेद किया था, यह अवन्ती का साधारण अपमान नहीं है। भोजराज इस अपमान को भूलकर इधर-उधर ध्यान दे रहे हैं। आप कुसुमवती को उकसाइए, सारी राजसभा को उकसाइए, सारे मालव में आग लगा दीजिए और मालवराज को तैलपराज पर अभियान में पेल दीजिए। यह आप ही की सामर्थ्य है, दूसरे की नहीं। यह सुयोग भी अच्छा है। मालवराज अवन्ती से बाहर हैं। आपके काम में बांधा न होगी।” भस्मांकदेव ने गंभीर विचार करके कहा, “ठीक है महता, मैं जाउँगा।" "तो यह महाराज की मुद्रिका है, आप अभी, इसी क्षण प्रस्थान कर जाएँ। एक क्षण भी हमारे लिए मूल्यवान है।" “ऐसा ही होगा”, कहकर भस्मांकदेव उठे। दामोदर भी उठे। दो घड़ी बाद, दो अश्वारोही अवन्ती-द्वार पर पहुँचे। एक द्वार के बाहर अवन्ती के मार्ग पर चला। दूसरा उस पर शुभ दृष्टि बिखेरता पीछे लौटा। प्राची दिशा उज्ज्वल हो रही थी।