विमलदेव शाह विमलदेव एक सामर्थ्यवान् तरुण था। वह देखने में दर्शनीय, व्यवहार में नम्र और युद्ध-स्थल में कठिन योद्धा था। बाण-विद्या में कुमार भीमदेव के बाद उसी का नाम गुजरात में विख्यात था। यह एक भावुक श्रावक जैन था। जाति का बनिया था परन्तु स्वभाव का क्षत्रिय। यद्यपि महाराज चामुण्डराय के राज्य में यह प्रधान कोषाध्यक्ष था, परन्तु कुमार भीमदेव का अभिन्न मित्र और युवराज वल्लभदेव का प्रधानमन्त्री था। महाराज चामुण्डराय को यह व्यक्ति पसन्द नहीं था, क्योंकि वह सदैव महाराज के खर्च पर टीका- टिप्पणी करता रहता था। बहुधा महाराज की माँग की अवज्ञा भी कर बैठता था। वह अपने अधिकार और कर्तव्य में चौकस था। उसका आत्मसम्मान और स्वाभिमान इतना बढ़ा हुआ था कि वह गुजरात में अपने समान वीर और राजपुरुष दूसरे को समझता ही न था। गुजरात में केवल दो ही पुरुष थे जिन्हें यह पुरुष आदर की दृष्टि से देखता था। एक युवराज वल्लभदेव, दूसरे ब्राह्मण भस्मांकदेव। दामोदर को यह अपना प्रतिस्पर्धी समझता था, तथा उससे भय भी खाता था। दामोदर थोड़ा विश्राम कर झटपट नित्यकर्म से निपटकर घोड़े पर सवार हो विमलदेव के आवास की ओर गया। विमल का आवास पाटन में अति भव्य और प्रभावशाली था। उससे स्वामी की शालीनता और सुरुचि दोनों ही प्रकट होती थीं। दामोदार को देखते ही विमल ने आग्रहपूर्वक उसका स्वागत करते हुए कहा, “महता, महाराज वल्लभदेव को नई सैन्य भर्ती करने के लिए धन भी तो चाहिए।" “यह तो पाटन के अर्थमन्त्री के सोचने की बात है।" “अर्थमन्त्री क्या करे, बड़े महाराज के लानतान के खर्च से कुछ बचे तब तो!” “राजकोष पहले राज-काज में खर्च होगा, पीछे राजा के लानतान में, वह भी मर्यादित।" "वही तो महता, इसीलिए मैं नित्य महाराज चामुण्डराय की घृणा का पात्र बनता 66 " “यह तो जब तक वीकणशाह का स्थान विमलदेव नहीं ग्रहण कर पाते, तब तक सहना ही पड़ेगा।" विमलदेव ने मन्द मुस्कान बिखेरते हुए दामोदर को देखा और कहा- "महता, स्वप्न देख रहे हो?" “ स्वप्न रात देखा था, आज तो जो कुछ देलूँगा, वह प्रत्यक्ष ही।" "क्या कोई और योजना है?" "स्वप्न को सत्य करने की।" "कब?" "आज ही।"
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