धर्म की तलवार आपने अजमेर से आगरे तक का भू-भाग देखा होगा। इस समय इस भूभाग में लम्बी-चौड़ी साफ-सुथरी सड़कें, साँप की तरह बलखाती हुई छोटी-बड़ी पहाड़ियों के अँचल में फैली हुई दीख पड़ती हैं। इधर से उधर रात-दिन रेल-गाड़ियाँ दौड़ती हैं, राह में अलवर, बांदीकुई, अछनेरा, फुलेरा, जयपुर, भरतपुर और अजमेर के शानदार स्टेशन बने हुए हैं। जब आप फलट क्लास में गुदगुदे गद्दों पर अधलेटे, सुगन्धित सिगरेट के धुएँ का गुबार बनाते इन स्टेशनों पर गाड़ी के रुकते ही खानसामाओं को, चाय-टोस्ट-मक्खन, सोडा-बर्फ सुरुचिपूर्ण ढंग से लिए जर्राफ सफेद साफ पोशाक पहने सेवा में उपस्थित हुआ देखते हैं, तथा जब सावन की ठंडी बरसाती हवा के झोंके, घड़घड़ाती सरपट दौड़ती हुई रेलगाड़ी के आपके डिब्बे में अनायास ही घुसकर आपकी यात्रा को अधिक आनन्दप्रद बना देते हैं, और जब आप जयपुर, अजमेर जैसे समृद्ध शहरों की भव्य छटा का अवलोकन करते हैं, तब शायद ही आपके ध्यान में यह बात आती होगी कि अब से एक हजार वर्ष पूर्व यह भूभाग लगभग जनशून्य, उजाड़, दुर्गम और हिंसक पशुओं से परिपूर्ण था। बड़े-से-बड़ा साहसिक यात्री भी इस जटिल भयानक प्रदेश में होकर एकाकी यात्रा करने का साहस न कर सकता था। भव्य जयपुर के पाश्र्व में, जो ध्वस्त आमेर नगर दीख पड़ता है, वह उन दिनों मीना लोगों की मुख्य राजधानी था। उन दिनों माची, खोरू, गेटोर तथा कोटवाड़ा जैसे छोटे गाँवों में भी, मीना सरदारों की छोटी-बड़ी गढ़ी बनी हुई थीं। मीना बड़े लड़ाके और बलवान थे। आसपास के इलाकों में उनकी धाक बंधी थी। आसपास के पार्वत्य प्रदेशों में उनके अधीन बावन दुर्ग थे, जिनमें हज़ारों मीना-सुभट हर समय तीर-कमठा लिए रणसज्जा में सजे तैयार रहते थे। आमेर राज्य के संस्थापक कछवाहा ईश्वरदास ने, सनक में आकर अपना सब धन ब्राह्मणों को दान दे डाला था और आमेर का राज्य अपने दोहते जयसिंह तोमर को देकर स्वयं वानप्रस्थी हो गए थे। उन दिनों ग्वालियर भी आमेर राज्य अन्तर्गत था, और वहाँ ईश्वरदेव के पुत्र सौढ़देव रहते थे। उनसे तोमरों ने कहा, कि आपके पिता ने यह सम्पूर्ण राज्य हमें दे दिया है, अत: अब ग्वालियर भी आप खाली कर दीजिए। पिता की आन मानकर सौढ़देव ने ग्वालियर छोड़ दिया और दौसा में बड़गूजरों के आश्रित हो आ बसे। उन दिनों दौसा एक अच्छा व्यापारिक केन्द्र था और वह बड़गूजरों की राजधानी था। पर वह चारों ओर से मीनाओं की रियासतों से घिरा था। अत: मीनाओं से आए-दिन झगड़े-झंझट होते ही रहते थे। बड़गूजर राजा दुर्बल था। वह मीनाओं के अत्याचारों और लूट-खसोट से बहुत तंग था। सौढ़देव जैसे बात के धनी थे, वैसे ही तलवार के भी धनी थे। सेनानी भी वे बड़े बांके थे। बड़गूजरों ने जब उनकी खूब आवभगत की, तो सौढ़देव ने उनका संगठन करके उनके अनुरोध से मीनाओं की संयुक्त सेनाओं से घोर युद्ध करके सदा के लिए उनका बल क्षीण कर दिया। तोमरों ने अपनी ओर से एक मीना सरदार को राजा बनाकर आमेर पर
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