पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१३८

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के दक्षिण कक्ष से थोड़ा पीछे हटा। तत्क्षण ही दक्षिण कक्ष हटने लगा और उसके सैनिक बिखरने लगे। इसी समय उस कक्ष के दो प्रधान सेनानायक मारे गए। महाराज धर्मगजदेव ने यह संयोग पा स्वयं कक्ष को भारी दबाव में डाल दिया। अमीर यह देखकर तीर की भाँति उधर दौड़ा। उसने वामकक्ष की दो टुकड़ियों को बुलाकर इस कक्ष को मज़बूत किया। परन्तु इसी समय दक्षिण कक्ष के एक सरदार ने आकर कहा, “हुजूर, फौज पस्त-हिम्मत हो रही है। बहुत नुकसान हो रहा है। किसी तरह लड़ाई रोकिए।" अमीर ने कहा, "लड़ाई रोकने का कोई चारा नहीं है। हमें शाम तक जैसे बने लड़ना ही होगा।" अमीर ने अभी कठिनता से यह वाक्य कहा था कि गोफ से छूटा एक पत्थर उसकी छाती में आ लगा। इसी क्षण उसके घोड़े की आँख में एक तीर घुस गया। घोड़ा चारों पैरों से उछला। अमीर घोड़े से फिर गिर पड़ा और मुँह से रक्त-वमन करने लगा। अफ़गान सरदार अमीर को घेरकर खड़े हो गए। उनके चारों ओर मारकाट मच रही थी। सरदार घबराए हुए थे। किन्तु अमीर कुछ क्षणों में स्वयं उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, “कुछ फिक्र नहीं, दूसरा घोड़ा लाओ।” घोड़ा आते ही वह उछलकर घोड़े पर सवार हो गया। तीसरा पहर होते-होते मुसलमानों की सेना पीछे हटने लगी। राजपूतों ने अवसर देखकर शत्रु-सैन्य में घुसकर हाथों-हाथ युद्ध करने की ठान ली। अमीर के सरदारों ने तत्क्षण युद्ध बन्द करने की अमीर को सलाह दी, परन्तु अमीर ने नहीं माना। उसने कहा, “जैसे भी हो हमें सूर्यास्त तक लड़ना होगा।" हिन्दू सेना हर-हर महादेव करके यवन-सेना में घुस गई। यवन-सेना की टुकड़ियां तितर-बतिर होती गईं। उसकी व्यवस्था बिगड़ गई। राजपूत और मेर दोनों ने तीर-कमान छोड़ बी, कटार और तलवारें चमकानी प्रारम्भ कर दीं। अन्ततः अमीर एक भाला हाथ में लेकर शत्रुओं को ललकारता हुआ आगे बढ़ा। उसके साथ जूझ मरने वाले खूखार बलूची पठानों का एक ज़बरदस्त दस्ता था। महाराज धर्मगजदेव ने यह देखा। वे सिंह की भाँति घोड़ा उड़ाते अमीर के सम्मुख जा धमके। उनके चारों ओर चौहान सरदारों और माण्डलिक राजाओं का दल था। दोनों दलों मुहूर्त भर के लिए तुमुल संग्राम छिड़ गया। इसी बीच में अमीर और दो घाव खा गया। महाराज धर्मगजदेव भी घायल हो गए। सन्ध्याकाल हो गया। पर इस युद्ध का विराम नहीं हुआ। इसी केन्द्र पर दोनों ओर के योद्धा सिमट-सिमट कर एकत्र होने और कट-कट कर गिरने लगे। पश्चिम दिशा लाल हुई। फिर अंधकार व्याप्त हुआ, पर मारा-मार चलती ही रही। पठानों का दल घिर गया। अमीर को सरदारों ने फिर समझाया कि पीछे हटे, पर अमीर ने नहीं सुना। वह मदमत्त हाथी की भाँति लड़ रहा था। महाराज धर्मगजदेव ने देखा कि यही समय है। उन्होंने संकेत किया, और सांभर के ढुंढिराज अपनी बीस सहस्र नवीन सैन्य लेकर बाज़ की भांति अमीर की सेना पर बगल से टूट पड़े। यह देख अमीर हताश हो घोड़े पर ही मूर्छित हो गया। उसके सरदारों ने तत्क्षण उसे हाथों-हाथ उठा लिया । भारी मारकाट से निकालकर तलवारों की छाया में उसे पीछे हटा ले गए। अब निरुपाय उन्होंने सुलह का