पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१३७

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रुक गए। अपराह्न होते-होते अमीर की सेना में अव्यवस्था दीखने लगी। बलूची-पठान जगह-जगह पीछे हटने लगे। महाराज धर्मगजदेव ने यह देख अपने सुरक्षित अश्वारोहियों को धावा बोलने की आज्ञा दी। इस नई सेना के धक्के को पठान सहन न कर पीठ दिखाकर भागने लगे। अमीर ने विपत्ति को सम्मुख देख भागते बलूचियों के सम्मुख अपना अश्व दौड़ाया। और हरा झंडा ऊँचा करके ललकार कर कहा, "खुदा और इस्लाम के नाम पर मरो और मारो। भागने की गुंजाइश नहीं है। गज़नी बहुत दूर है।" बलूची जैसे-तैसे संगठित हुए। एक बार फिर घमासान युद्ध हुआ। लाशों पर लाश गिरने लगीं। दोनों ओर की सेना में थकान और क्लान्ति दीखने लगी। अमीर ने सूर्यास्त से प्रथम ही युद्ध बन्द करने का संकेत किया। इस दिन भी बिना किसी निर्णय के दोनों सेनाएँ पीछे फिरीं। परन्तु राजपूत सेना उत्साह में थी और अमीर की सेना घबराहट में। यद्यपि राजपूतों की सेना का भी आज भारी संहार हुआ था। परन्तु अमीर की सेना की क्षति साधारण न थी। अमीर चिन्तित हुआ। तीसरे दिन अमीर की इच्छा युद्ध बन्द करने की थी। परन्तु महाराज धर्मगजदेव ने नहीं माना। उन्होंने अमीर की सेना पर आक्रमण कर दिया। अमीर को युद्ध करना पड़ा। युद्ध प्रारम्भ करने से पूर्व महाराज ने अमीर को सन्देश भेजा कि वह चाहे तो उसे सुरक्षित लौटने दिया जा सकता है। अमीर की सारी सेना में निराशा व्याप गई। उसने उस दिन खेत सारी सेना के बीच प्रात: कालीन नमाज़ पढ़ी। नमाज़ के बाद उसने संक्षिप्त भाषण दिया। भाषण में उसने कहा, “बहादुर पठानो, तुमने अब से पहले सोलह बार अपने घोड़ों की टापों से काफिरों के इस मुल्क को रौंदा है। और सदैव तुम अपने सिरों पर फतह का सेहरा बाँध कर और अपने घोड़ों की ज़ीनों को मुहरों और जवाहरातों से भर कर, और गुलामों को घोड़ों की जीन से रस्सियों से बाँध कर गजनी लौटे हो। तुम्हारी औरतें इस बार भी तुम्हारे उसी तरह लौटने का इन्तजार कर रही हैं। सो क्या तुम इस बार लड़ाई में हार कर लौटोगे? अपनी तलवार और इस्लाम के नाम पर आओ, फतह हासिल करो। भागने की राह बन्द है। खुदा तुम्हारे साथ है। काफिर पामाल है।" सेना में एक बार अल्लाहो-अकबर का जयनाद हुआ। बर्बर तातार और पठान नए आवेश के जनून में भरकर घोड़ों पर सवार हुए। देखते-ही देखते घमासान युद्ध होने लगा। यह चौमुखी युद्ध था। कहीं पर तलवारें झनझना रही थीं, कहीं बर्छियाँ कलेजों के आर-पार हो रही थीं। आकाश तीरों से भरा था। दोनों ओर के भट एक-दूसरे के खून के प्यासे हो कर मारा मारी कर रहे थे। अमीर विद्युत- वेग से घोड़े पर सवार कभी यहाँ और कभी वहाँ अपनी सेना को उत्साहित करता फिर रहा था। मध्याह्न में अभी देर थी कि अमीर की सेना में चंचलता प्रकट होने लगी। महाराज धर्मगजदेव का दबाव बढ़ता जा रहा था। अमीर अपने सैनिकों को हाथ उठाकर कुछ कहना चाह रहा था। इतने में एक बाण आकर अमीर की भुजा में घुस गया। उससे बेसुध होकर अमीर घोड़े पर से नीचे आ पड़ा। तत्क्षण अफगान सरदारों ने अमीर को चारों ओर से घेर लिया। एक सरदार ने खींचकर तीर निकाल लिया और घाव पर पट्टी बाँध दी। कुछ ही देर में अमीर होश में आया, और तुरन्त घोड़े पर सवार होकर सैनिकों को उत्तेजित करने लगा। वह अपनी सेना