पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१४६

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में कूद पड़ीं। सहस्रों जनों के जय-जयकार, रुदन, क्रन्दन और बाजों के घोर शब्दों के कारण कानों के पर्दे फटे जा रहे थे। बहुत जन मूर्छित हो कर गिर गए। देखते-ही देखते वे सैकड़ों जीवित सत्व जलकर राख का ढेर हो गए। चिता के लाल-लाल दहकते हुए अंगारे मानो क्षात्र तेज से सूर्य के तेज की स्पर्धा-सी करने लगे। ज़ार-ज़ार रोते, दाढ़ी नोंचते, सिर पर धूल-राख बिखेरते, गिरते-पड़ते नगर निवासी पीछे लौटे। नगर के कोटपाल ने शोकसूचक झण्डा किले पर चढ़ा दिया। उस दिन सम्पूर्ण नगरी में चूल्हा नहीं जला। रात में किसी ने दियाबत्ती भी नहीं किया। सारा नगर गहरे अँधकार में डूबा रह गया। अजमेर के आबाल- वृद्ध भूखे-प्यासे धरती में लोट-लोटकर शोक-रुदन करते रहे। राजपुरुष कुमार वीसलदेव, अवशिष्ट राज परिवार को ले वीटली दुर्ग में चले गए। अजमेर में सती माताओं की ऊर्ध्व दैहिक-क्रिया करने को केवल राजपुरोहित कृपाशंकर आचार्य और कुछ सेवक रह गए