पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१५

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गया था, वह एक-आध घाव भी खा गया था, उसके घाव से रक्त बह रहा था। इससे वह सुस्त होने लगा। इतने में पीछे से एक ललकार सुनकर दोनों योद्धा ठिठक कर रह गए। एक बलिष्ठ और तेजस्वी योद्धा भीड़ को चीर कर आगे आ रहा था उसके साथ बहुत-से सेवक मशाल लिए थे। मशालों के प्रकाश में उसका श्यामल मुख तप्त ताम्र की भाँति दमक रहा था। बड़ी-बड़ी काली आँखें लाल चोट हो रही थीं। उसके मुख पर, शरीर पर तथा सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर एक अभय तेज विराज रहा था। उसके कन्धे पर धनुष और तरकस, फेंट में कटार और हाथ में लम्बी तलवार थी। उसके सिर पर केसरी पाग में दैदीप्यमान हीरे का एक तुर्रा बन्धा था। उसने अपने हाथ की तलवार उँची करके कहा, "मूर्खो, देवस्थान में लड़ते हो?" युवक ने आगन्तुक को देखकर तलवार नीची कर ली। परन्तु साधु ने लाल-लाल आँखें करके निर्भय स्वर में कहा, 'दो आदमियों के झगड़े में बिना बुलाए बीच में पड़कर उन्हें मूर्ख कहने वाला ही मूर्ख है।"

आगन्तुक योद्धा ने जलद-गम्भीर स्वर से पूछा—

"तुम कौन हो?"

"यही मैं तुमसे पूछता हूँ," साधु ने उद्दण्डता से कहा।

"इस झगड़े का कारण?"

"तुम्हारे पंचायत में पड़ने का कारण?"

"तब देख कारण!" आगन्तुक योद्धा ने तलवार का भरपूर हाथ साधु पर फेंका। साधु भी असावधान न था। क्षण-भर में ही दोनों योद्धा असाधारण दक्षता से युद्ध करने लगे।

तभी लोगों ने एक ध्वनि सुनी—'शान्तं पापं! शान्तं पापं!' पहले क्षीण, फिर स्पष्ट। तब सहसा एक भव्य मूर्ति सामने आती दिखाई पड़ी। उपस्थित भीड़ सहम कर पीछे हट गई। दोनों योद्धाओं ने भी हाथ रोक लिए। आगन्तुक उँचे कद का, गौरवर्ण एक तेजस्वी महापुरुष था, उसके उर्ध्व रेखांकित मस्तक पर त्रिपुण्ड्र, सीस पर जटा-जूट, कमर में व्याघ्र-चर्म, अंग में गेरुक, मुख पर हिम-धवल नाभि तक लम्बी दाढ़ी, पैरों में चन्दन की खड़ाउं, दृष्टि निर्मल और भयहीन एवं मस्तक में त्रिकाल-ज्ञान की रेखा।

उपस्थित जनता 'जय स्वरूप! जय सर्वज्ञ!' कहकर पृथ्वी में झुक गई। युवक ने पृथ्वी पर लोटकर साष्टांग दण्डवत् की। आगन्तुक योद्धा ने भी चरण-रज ली, परन्तु साधु तलवार हाथ में लिए खड़ा वृद्ध को घूरता रहा।

वृद्ध महापुरुष ने योद्धा के मस्तक पर हाथ रखकर कहा, "युवराज भीमदेव, तुम्हारी जय हो। परन्तु देवस्थान में रक्तपात नहीं होना चाहिए। तलवार को म्यान में करो।"

भीमदेव ने चुपचाप तलवार म्यान में कर ली।

फिर उसने मुस्कराकर साधु की ओर देखा, और कहा, "प्रतापी सुलतान महमूद! चिरंजीव रहो ! वत्स, साधुवेश तुमने धारण किया, पर उसे निबाह न सके। देवस्थान में भी लड़ पड़े। अब तुम भी तलवार को म्यान में करो।"

साधु का परिचय सुनकर सब उपस्थित जन भीत-चकित हो, आंखें फाड़-फाड़ कर साधु को देखने लगे। बहुत से लोग उत्तेजित भी हुए। परन्तु वृद्ध ने हाथ उँचा करके सतेज