पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१४

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अश्वारोही अश्व से उतर पड़ा। फिर उसने सावधानी से अपना गट्ठर उतारा। अश्व को एक वृक्ष के नीचे बाँधकर वह कोठरी में गया। उसे साफ कर उसने यत्न से भार का गट्ठर खोला। इसके बाद चकमक जलाकर कोठरी में प्रकाश किया, उस धीमे और पीले प्रकाश में, एक रूपसी बाला की झलक क्षुद्र कोठरी के आसपास ठहरे हुए यात्रियों को दीख पड़ी। पर क्षण भर ही में युवक ने कोठरी का द्वार बन्द कर उसमें बाहर से ताला जड़ दिया। इसके बाद वह अश्व का चारजामा बिछाकर कोठरी के द्वार पर ही लेट गया। कमर की तलवार म्यान से बाहर कर उसने अपने पाश्र्व में रख ली।

बराबर की कोठरी के बाहर दो साधु बैठे धीरे-धीरे बातचीत कर रहे थे। उन्होंने उस रूपसी बाला की झलक देख ली। पहले आँखों-ही-आँखों में उन्होंने मन्त्रणा की, फिर उनमें से एक ने आगे बढ़कर पूछा—

"कहाँ से आ रहे हो जवान?"

"तुम्हें क्या!" युवक इतना कह, मुंह फेरकर पड़ रहा। परन्तु साधु ने फिर कहा—

"पर इस गट्ठर में इस सुन्दरी को कहां से चुरा लाए हो?"

"तुम्हें क्या...?" युवक ने क्रोधपूर्वक वही जवाब दिया।

दोनों साधुओं ने परस्पर दृष्टि-विनिमय किया, इसके बाद एक साधु ने स्वर्ण-दम्भ से भरी थैली युवक पर फेंककर कहा—

"बेच दो वह माल यार?"

युवक क्रुद्ध होकर बैठ गया। उसने तलवार की मूठ पर हाथ धर कर कहा—

"क्या प्राण देना चाहते हो?"

साधु हंस पड़ा। उसने कहा, "ओह, यह बात है!"

उसने धीरे से अपने वस्त्रों से तलवार निकालकर कहा, "यह खिलौना तो हमारे पास भी है, परन्तु तकरार की ज़रूरत नहीं, हम मित्रता किया चाहते हैं, वह थैली यथेष्ट नहीं तो यह और लो।" उसने वस्त्र में से बड़े-बड़े मोतियों की एक माला निकालकर युवक पर फेंक दी।

युवक अत्यन्त क्रुद्ध होकर बोला, "तुम अवश्य कोई छद्मवेशी दस्यु हो, प्राण प्यारे हैं तो कहो, कौन हो?"

"इससे तुम्हें क्या! यह कहो, वह सुन्दरी तुम प्राण देकर दोगे या स्वर्ण लेकर?"

"मैं अभी तुम्हारे प्राण लूंगा।" युवक पैंतरा बदल कर उठ खड़ा हुआ। साधु ने भी तलवार उठा ली। चन्द्रमा के उस क्षीण प्रकाश में दोनों की तलवारें खनखना उठीं। युवक अल्पवयस्क था, पर कुछ ही क्षण में मालूम हो गया कि वह तलवार का धनी है। उसने कोठरी के द्वार से पीठ सटा कर शत्रु पर वार करना प्रारम्भ कर दिया। परन्तु साधु भी साधारण न था। ज्यों ही उसे युवक की दक्षता का पता चला, वह अति कौशल से तलवार चलाने लगा। दूसरा साधु चुपचाप देखता रहा। थोड़ी देर में वहाँ बहुत-से यात्री एकत्र हो गए और शोर मचाने लगे। कुछ दोनों वीरों का हस्त कौशल देख वाह-वाह करने लगे। परन्तु इस अकस्मात और असमय के युद्ध का कारण क्या है यह कोई नहीं जान सका। अकस्मात् युवक का एक करारा आघात खाकर साधु चीत्कार करके गिर पड़ा। यह देख सिंह की भाँति उछाल मार कर दूसरा साधु तलवार सूंतकर युवक पर टूट पड़ा। परन्तु युवक थक