पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१५५

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हो गए। सारी ही खाद्य सामग्री और पीने का पानी नष्ट हो गया। जंगल पार करके लश्कर ने जैसे-तैसे एक छोटे-से मैदान में छावनी डाली। छावनी क्या थी, ऐसा प्रतीत होता था, बहुत से खानाबदोश आदमियों का रेवड़ पड़ा हो। सबके कपड़े-लत्ते झुलस गए थे। अनेकों की दाढ़ियाँ आधी जल कर उनकी विचित्र सूरत बन गई थी। रसद और खाने-पीने का कुछ भी सामान पास न था। फिर भी आगे बढ़ना सम्भव न था। उस दिन भूखी-प्यासी, थकी और अव्यवस्थित अमीर की सेना अत्यन्त हतोत्साहित हो वहीं पड़ी रही। दूसरे दिन सूर्योदय से प्रथम ही अमीर ने वहाँ से कूच कर दिया। उसने सोचा कि राह में जो कोई समृद्ध नगर-गाँव मिले, उसी को लूटपाट कर सेना के भोजन, वस्त्र की व्यवस्था की जाए। परन्तु कुछ चलने के बाद ही उसे उस तंग घाटी में घुसना पड़ा। जल्दी ही उस मुसीबत को पार करने के विचार से अमीर सेना लेकर बिना ही आगा-पीछा सोचे उस दर्रे में घुस गया। आधा दर्रा पार करने पर उसे अपनी नई विपत्ति का आभास मिला। उसने देखा, दुर्गम पर्वत-शृंग पर चींटियों की भाँति रेंगते हुए अनगिनत धनुर्धारी फिर रहे हैं। उसका मन शंका और भय से काँप उठा। अमीर के सेनापतियों ने भी इस भयानक परिस्थिति का अनुभव किया। परन्तु पीछे लौटने का तो कुछ अर्थ ही न था। प्राणों की बाज़ी लगाकर अमीर और आगे बढ़ा। अब उसपर दोनों ओर से तीरों की वर्षा प्रारम्भ हो गई। बड़े-बड़े पत्थर लुढ़क कर अमीर के बलोची सवारों को घोड़ों सहित चकनाचूर करने लगे। अमीर ने जल्द से जल्द घाटी को पार करने की जैसे सम्भव हो, ताकीद की। सेना भारी हानि सहकर भी इस विपत्ति से बच निकलने को अपने ही सिपाहियों, घोड़ों, हाथियों आदि को कुचलती हुई आगे बढ़ चली। तीसरे प्रहर तक अमीर ने घाटी के बाहर मुँह किया। दुर्लभराय के कौशल ने बिना एक आदमी का घात कराए, अमीर की सेना को एक प्रकार से तहस-नहस कर दिया था। अब उसने सम्मुख युद्ध करना व्यर्थ समझ अमीर को आगे भागने का मार्ग तो दे दिया, पर पश्चात् भाग में व्यवस्थित उसका सब धन-रत्न खजाना लूट लिया। अमीर धन-खजाना-कोष छिनाकर, बेंत से पिटे हुए कुत्ते की भाँति दर्रे से निकलकर ताबड़तोड़ भागा। नदी को पार कर उसने खुले मैदान में छावनी डाली। और ईश्वर को धन्यवाद देने को नमाज पढ़ी। दुर्लभराय अपने सफल अभियान पर प्रसन्न हो पीछे लौटा।