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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१६४

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जूनागढ़ का राव जूनागढ़ के राव नवधन बिना ही किसी पूर्व सूचना के इसी समय पाटन में आ धमके। उनके साथ दो हज़ार कच्छी सवार थे। उन्होंने नगर से बाहर सहस्रलिंग सरोवर के तट पर डेरा डाला। राव नवधन एक तेजवान, वीर, सरल किन्तु निष्ठावान पुरुष थे। वे बात के धनी भी थे। गुजरात में उनकी बहुत धाक थी। लोग उनसे भयभीत रहते थे। वे राजकुमार भीमदेव के श्वसुर थे। उनकी इकलौती बेटी उदयमती भीमदेव को ब्याही थी। रानी उदयमती यद्यपि अभी नवोढ़ा ही थी, परन्तु पिता के समान ही तेजस्विनी और स्वाभिमानी थी। मिज़ाज भी उसका तीखा था। चाल-ढाल, रहन-सहन गर्वीला था। अपने पिता पर उसे बहुत घमण्ड था। बिना माता की इकलौती पुत्री को राव प्राणों से बढ़कर प्यार करते थे। राव नवधन एक कठोर, दृढ़प्रतिज्ञ और कड़े स्वभाव के योद्धा अवश्य थे, परन्तु हृदय उनका शुद्ध था। पाटन की अधोगति, अन्तःपुर का विद्रोह, और गुर्जरेश्वर की अकर्मण्यता एवं अमीर की अवाई सुनकर ही राव बिना निमन्त्रण, पाटन में अपना कर्तव्य पालन करने आए थे। परन्तु इस टेढ़े अवसर पर राव का ससैन्य आना सुनकर लोग आश्चर्य और भय से परस्पर कानाफूसी करने लगे। बिना बुलाए ससैन्य राजधानी में आना मर्यादित न था। राजपुरुष चिन्ता में पड़े। परन्तु दामोदर महता तुरन्त राज्य की ओर से राव का सत्कार करने उनके डेरे पर पहुँचे। राव अपने पट-मण्डप में बहुमूल्य रेशमी गद्दी पर बैठे थे। उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे, भारी डील, लाल डोरे वाली आँखें, घनश्याम शरीर और घन-गर्जन सा कण्ठस्वर अति भव्य था। उनके आगे गद्दी पर जड़ाऊ मूठ की नंगी तलवार रक्खी थी, तथा राव के हाथ में रुद्राक्ष की माला थी। दामोदर को देखकर राव नवधन ने ऊँचे स्वर में हाथ ऊँचा करके कहा, “आओ महता, बैठो, बैठो!" दामोदर ने निकट जा हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, सूचना भी नहीं भेजी, “घर आने के लिए सूचना कैसी? कहो, पाटन पर कैसी बीत रही है भाया?" "सब ठीक-ठाक है महाराज।” “यही देखने तो आया हूँ। गुर्जरेश्वर तो अपनी बावड़ी और ताल बनवाने में संलग्न हैं, क्यों?" "महाराज देखेंगे तो प्रसन्न होंगे, धवल-गृह तो बनकर तैयार हो चुका है।" "देखूगा भाया। पर पहले गुजरात की प्रतिष्ठा की बात देखनी है। गज़नी का अमीर आ रहा है, सो गुर्जरेश्वर क्या धवल-गृह में ही इस म्लेच्छ का स्वागत करेंगे?" “यह कैसी बात दरबार! जब तक जूनागढ़ की तलवार है, तब तक... “अब यह बात रहने दो महता, तुम्हें तो अपनी शक्ति पर बड़ा भरोसा है, फिर चुपचाप पधारे।" 66 "