" अपनों को क्यों बुलाने लगे। पर भाया, मुझसे तो रहा नहीं गया। चला आया। समय आया है तो अब मानापमान क्या। अब सच-सच जो बात है, वह कहो।' महता ने हाथ जोड़ और अधीनता जताकर कहा, “अब आपका विराजना हुआ है तो सब ठीक हो जाएगा। सब निवेदन करूँगा। किन्तु क्या कुमार को सूचना दे दूँ?" "अभी नहीं, महाराज से मिलने के बाद।" "तो मैं महाराज को निवेदन करता हूँ।" “निवेदन हो चुका है महता, अभी महाराज नशे-पानी की झोंक में हैं। जब सावधान होंगे तब...” राव नवधन इतना कह व्यंग्य से मुस्करा दिए। फिर कुछ सोचकर बोले, “महता, महाराज गुर्जरेश्वर हैं, पर मैं भी सोरठ का धनी हूँ! गज़नी का अमीर जो सोमनाथ पर आए, तो राव के जन्म को ही धिक्कार है।" “परन्तु महाराज, वह आए तो, सोरठ की तलवार के साथ-साथ गुजरात की तलवार भी तैयार है।" "और कुमार भीमदेव?" “महाराज, गुजरात की तलवार तो कुमार ही के हाथ में है।” फिर उसने इधर- उधर देखकर मन्द स्वर में कहा, “यशस्वी मूलदेव की गद्दी पर तो एक दिन कुमार ही की प्रतिष्ठा होगी। और महारानी उदयमती गुजरात के भावी अधिपति की माता।" राव नवधन प्रसन्न हो गए। उन्होंने सन्तुष्ट होकर कहा, “किन्तु महता, क्या कुमार भीमदेव पाटन में आते ही नहीं?" "क्यों नहीं महाराज,परन्तु इधर तो वह अमीर की अवाई की खटपट में लगे हैं।" "तो भाया, कुमार को सूचना भेज दो, और घर-बाहर के सब सगे-सम्बन्धियों को भी बुलाओ। केसरदेव मकवाना पर अभी एक सांढ़नी रवाना कर दो। अरे भाई, यह तो धर्म पर तलवार है! हाँ राजपुत्र दुर्लभदेव का क्या समाचार है? सुना है, उन्होंने संन्यास लिया “राज-संन्यास महाराज” महता ने हँसकर कहा, “महाराजकुमार योग और भोग दोनों ही का आनन्द-लाभ कर रहे हैं।" “और तो कुछ बात नहीं है महता?" सोरठ का राव गुजरात की घरू राजनीति में उतरे, यह दामोदर को रुचा नहीं। उसने बात को उड़ाकर कहा, “महाराज जब पाटन में पधारे ही हैं तो सब स्वयं देख-भाल लेंगे।" "पर सुनता हूँ, दुर्लभदेव ने खूब सैनिक तैयारी की है!" “सिद्धपुर की रक्षा का भार भी तो उन पर है। आखिर सिद्धपुर गुजरात का मुख है।" “ठीक है महता।" दामोदर प्रणाम करके उठ खड़ा हुआ। उसने पुनः हाथ जोड़कर कहा, “तो मैं सांढ़नी-सवार रवाना करता हूँ।" राव ने सत्कार से दामोदर को विदाई दी और गद्दी पर बैठकर माला फेरने लगे।
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