उठाकर ले जाते। उन्हें रोकने, या उनसे दाम मांगने का साहस नगर-जन नहीं कर सकते थे। सैनिक यह सुयोग पाकर नान्दोल वन सर्वनाश की यथासम्भव क्षति-पूर्ति कर चाक- चौबन्द होने लगे। परन्तु अमीर को जश्न मनाने का अवकाश न था। वह अत्यन्त व्यस्त हो अपने जीवन की सबसे बड़ी मुहिम का सामना करने की तैयारी कर रहा था। उसका अदम्य उत्साह, असीम साहस और रणपाण्डित्य भी उसके मन से भय, शंका और दुविधा को दूर नहीं कर सके थे। उसने बार-बार अपने सरदारों और सेनापतियों से गूढ़ परामर्श किए। कच्छ और प्रभास के चारों ओर फैले हुए अपने जासूसों को गुप्त आदेश भेजे। सब बातों पर विचार करके उसने इस समय अपने सैनिक और प्रतिनिधि पाटन में छोड़ना निरर्थक समझा। उसकी सारी ही सफलता अब सोमनाथ पट्टन की विजय पर निर्भर थी। सोमनाथ की विजय से समूचे गुजरात पर उसी की विजय थी। पाटन भी उसी के चरणतल में था। उसे सूचना मिल गई थी कि प्रभास में सारे कच्छ, गुजरात, काठियावाड़ की तलवारें उसके स्वागत के लिए तैयार हैं। इसलिए वह अब इधर-उधर देख ही न सकता था। उसने एक ही ठान ठानी-पहले प्रभास और पीछे और कुछ। उसने पाटन में और समय व्यर्थ खोना ठीक नहीं समझा। उसे जो कुछ उपयोगी भेंट पाटन में मिली, उसे ले, चण्ड शर्मा को ही अपना प्रतिनिधि बनाकर और उन्हें ही नगर सौंप-उसने तीसरे ही दिन सूर्योदय से पूर्व सोमनाथ पट्टन की ओर सवारी बढ़ाई। पाटन में एक भी म्लेच्छ नहीं रहा। चण्ड शर्मा और भस्मांकदेव ने संतोष की साँस ली। अब वे इस दुर्धर्ष शत्रु का वापसी में सत्कार करने और नगर की कठिन-से-कठिन समय में रक्षा करने के सब सम्भव प्रयत्न करने में जुट गए। उन्होंने विमलदेव शाह और दुर्लभदेव से अपने सम्बन्ध कायम किए। नगर के प्रत्येक घर को इस भाँति सन्नद्ध किया कि आवश्यकता होने पर प्रत्येक घर एक दुर्ग का रूप धारण कर ले। इस प्रकार दुधारी मीठी तलवार की राजनीति पर दोनों ब्राह्मण अपनी योजना के ताने-बाने बुनने लगे। पाटन में इस समय कुल तीन हज़ार पुरुष और केवल पाँच सौ स्त्रियां शेष थीं। इन सबको चण्ड शर्मा ने सैनिक रूप में संगठित कर दिया। आवश्यकता पड़ने पर प्रत्येक को, शत्रु से मोर्चा किस भाँति लेना पड़ेगा-यह सब उन्हें समझाया। घरेलू पदार्थों को युद्ध- साधन कैसे बनाया जाए यह बताया। योजना बनाकर व्यवस्थित रूप से पीछे हटना और आगे बढ़ना सिखाया। उनके हौसले बढ़ाए और भय, निराशा के भाव उनके मन से दूर किए। महाराज वल्लभदेव और विमलदेव शाह से यातायात-साधन तथा समाचार-वाहन सम्बन्धित रहें, ऐसी व्यवस्था की। दुर्लभदेव की एक-एक, गतिविधि पर दृष्टि रखी। वे प्रत्येक बात की मनचाही सूचना दुर्लभदेव को देते, उन्हें अपना राजा समझने का अभिनय करते और उनके आदेशों को मनमानी रीति पर पूरा करते। दुर्लभदेव अब अपने को सोलहों आना गुजरात का राजा समझने लगे थे। वह प्रच्छन्न रूप से एक-दो बार पाटन भी आ चुके थे। चण्ड शर्मा की व्यवस्था से वे संतुष्ट थे। उन पर उन्हें तनिक भी सन्देह नहीं था। चण्ड शर्मा की वह सीख-कि जब तक अमीर खुल्लमखुल्ला उन्हें गुजरात का राजा घोषित न करे-वे चुप ही बैठे रहें, उन्होंने मान ली थी।
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