पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२१३

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महता ने मर्म-भेदनी दृष्टि से तुर्क की ओर देखा। उसकी काली चमकीली आँखें निर्भय आनन्द की धारा बहा रही थीं। उसने कहा- "क्या तुम्हें मुझसे डर है?" “नहीं, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है।" दोनों वीरों ने अपने-अपने घोड़े ठीक किए और उन पर सवार हुए। वे धीरे-धीरे प्रभास की विपरीत दिशा की ओर चलने लगे। ये क्षण दामो महता के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थे। वे स्पष्ट ही एक ऐसे खतरे की ओर बढ़ रहे थे, जिसका साहस बहुत कम लोग कर सकते थे। तुर्क सैनिक कद्दावर और बलवान था। उसका घोड़ा बहुत उत्तम था। अपने बहुमूल्य वस्त्राभरणों से वह उच्च कुल का भी प्रतीत होता था। यह स्पष्ट था कि वह गजनी के अमीर का कोई उमराव है और महता अमीर के सैन्य-बल की सही झलक अपनी आँखों से देखने के लिए यह भारी खतरा उठा रहे थे। उन्होंने अभी-अभी उस यवन शत्रु की आँखों में एक गहरे विश्वास की चमक देखी थी। तथा अभी उसे प्राणदान भी दिया था। इसी से वह सत्साहस करके उसके साथ शत्रुपुरी में निर्भय घुसे चले जा रहे थे। कुछ दूर दोनों अद्भुत मित्र चुपचाप साथ-साथ चलते रहे। तुर्क ने अपने घोड़े की रास खींचकर कहा, “क्या मैं अपने नए दोस्त का नाम जान सकता हूँ।" “मैं गुर्जरेश्वर का एक सेवक हूँ, और अब लोग मुझे महता के नाम से पुकारते हैं।" "अगर गुजरात के राजा के पास ऐसे ही सेवक हैं, जैसे कि तुम हो, जो शत्रु के सामने पहाड़-सा अडिग और दोस्त के सामने पहाड़-सा महान् है, तो मैं गुजरात के महाराज के भाग्य पर ईर्ष्या करूँगा।" “क्या तुम्हारा ऐसा रुतबा है कि तुम प्रतापी गुजरॆश्वर के भाग्य से स्पर्धा कर सको?" “यह मैं नहीं कह सकता दोस्त। लेकिन मैंने जो कहा है, उसे फिर दुहराता हूँ।" "तो मेरा नाम तुमने पूछ लिया तुर्क सरदार, क्या तुम भी मुझे अपना नाम बताओगे?" "क्यों नहीं, मगर थोड़ा सब्र करने के बाद। अभी तुम मुझे सिर्फ एक दोस्त ही समझ लो।" “यदि इसमें कोई भेद है तो ऐसा ही सही, लेकिन तुम यह जानते हो कि मैं इस तलवार की दोस्ती के नाम पर कितना खतरा मोल ले रहा हूँ।" "लेकिन रसूल और खुदा के नाम पर जो तुम्हारा दोस्त बना है, उसके जिन्दा रहते तुम्हें खतरे से क्या डर?” "लेकिन तुम क्या मुझे अमीर के सामने ले जाओगे?" “मेरा बिलकुल यही इरादा है।" "क्या अमीर एक काफिर का अपने लश्कर में आना पसन्द करेगा?" "क्यों नहीं, जबकि वह उसके एक इज़्ज़तदार सरदार का जीवनदाता है।" “यह बात अमीर से कहेगा कौन?" “मैं कहूँगा।" 64