पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२२८

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आवश्यकता हो तो मेरे पास आना देवस्वामी, यह मत भूलना कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। और तुम्हें फतह मुहम्मद नहीं-देवस्वामी ही समझता हूँ।" फतह मुहम्मद ने दोनों हाथ जोड़कर हिन्दू रीति से महता का अभिवादन किया और कक्ष से बाहर हो गया। आनन्द भी उसके साथ-साथ पीछे चला। पानी में पैठकर फतह मुहम्मद ने कहा, “मेरी चीज़?" “यह है, लेकिन दम्म?" “यह लो” युवक ने मुहरों का तोड़ा आनन्द को पकड़ा दिया। फिर कहा, “वह चीज़ मुझे दो।" "अभी मेरे पास ही रहने दो, इससे मैं तुम्हारी मदद करूंगा।" फतह मुहम्मद ने कुछ सोचकर कहा, “अच्छा, तो अब मैं चला।" "फिर अब कब?" "कल।" "ठीक है” युवक ने पानी में गोता लगाया, परन्तु वह गया नहीं। दम साध कर कुछ देर पानी के भीतर ही भीतर बहाव से ऊपर को चला, और फिर किनारे पर आकर एक सीढ़ी के सहारे थोड़ा ऊपर आकर उसने सांस ली, फिर इधर-उधर देखा। आनन्द भी तट से गया नहीं। दो-चार कदम जाने का अभिनय करके वह लोमड़ी की भाँति घूमकर पेट के बल रेंगता हुआ किनारे-किनारे बहाव के ऊपर चलने लगा। उसे यह समझते देर न लगी कि फतह मुहम्मद गया नहीं, पानी में यहीं है। जब उसने पानी से सिर निकाला तो आनन्द ने देख लिया। वह भी धीरे से जल में पैठ गया। तलवार नंगी कर उसने हाथ में ले ली। फतह मुहम्मद ने डुबकी लगाई और आनन्द ने ध्यान से उसकी गतिविधि देखी। फिर उसने भी डुबकी लगाई। दोनों साहसी युवक अपने-अपने कार्य में तत्पर थे। जल ही जल में वे मुख्य द्वार तक पहुँच गए। यहाँ काफी प्रकाश था। पहरा भी बहुत था। फतह मुहम्मद थोड़ा हटकर गहरे जल में पैठ गया। आनन्द ने देखा, वह केवल छिपकर आगे बढ़ना चाहता है, वह भी सावधानी से जल के भीतर-ही-भीतर आगे बढ़ने लगा। त्रिपुर सुन्दरी के मन्दिर के पाश्र्वभाग में जल के ऊपर ही एक बहुत भारी शमी का वृक्ष था। उस वृक्ष से आनन्द को कुछ संकेत-शब्द सुनाई दिया। उस शब्द को सुनकर फतह मुहम्मद ने पानी से सिर निकाल कर संकेत किया और फिर किनारे की ओर बढ़ा। आनन्द एक सीढ़ी से चिपक गया। सिद्धेश्वर ही था। वह वृक्ष से उतरकर सीढ़ी तक चला आया। फतह मुहम्मद ने उसके कान के पास मुँह ले जाकर केवल इतना ही कहा, “मंजूर है" और वह पानी में पैठ गया। आनन्द ने स्पष्ट यह शब्द सुना। उसने देखा, फतह मुहम्मद तीर की भाँति लौटा जा रहा है। सिद्धेश्वर ने अपने चारों ओर देखा और मन्दिर के पिछवाड़े की ओर चला गया। आनन्द भी पानी से निकलकर उसके पीछे-पीछे हो लिया। नंगी तलवार उसके पास थी। सिद्धेश्वर चोर दरवाज़े से घुसकर जहाँ छोटे-छोटे बहुत से मन्दिर थे, उनमें चक्कर काटता हुआ जाने लगा। आनन्द ने भी निरशब्द उसका पीछा किया। घूमते-फिरते वह संकटेश्वर की बावड़ी के निकट आकर एकाएक आनन्द की दृष्टि से ओझल हो गया। आनन्द ने बहुत खोजा, पर सिद्धेश्वर का पता न लगा, जैसे उसे धरती निगल गई हो। इस समय प्रभात की