पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२३७

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संकटेश्वर की बावड़ी रात-भर के जागरण से थका हुआ आनन्द, खिन्न होकर अपने डेरे पर आया। नित्यकर्म से निवृत्त होकर उसने विश्राम की परवाह न कर दामो महता से मिलना चाहा, पर दामो महता अपने आवास में न थे। आनन्द ने उनकी खोज में समय नष्ट करना ठीक नहीं समझा। वह द्वारिका-द्वार की तरफ चला। उसकी दृष्टि खाई के उस पार श्मशान के उस छोर पर पड़ी अमीर की छावनी पर घूमने लगी। सूर्य काफी ऊपर उठ गया था, धूप की तिरछी किरणें अब सुहावनी लग रही थीं। उसकी उज्ज्वल आभा में रत्नाकर की फेन-राशि बड़ी शोभायमान दीख रही थी। वह कुछ देर तक खूब ध्यान से अमीर की छावनी को देखता रहा। वहाँ इस समय इतना दिन चढ़ने पर भी कोई नई हलचल न थी। आज अमीर क्या युद्ध नहीं करेगा? आनन्द कुछ देर यही सोचता रहा। परन्तु फिर उसकी विचारधारा सिद्धेश्वर की ओर गई। आखिर सिन्देश्वर एकाएक उसकी आँखों से ओट होकर गायब कैसे हो गया? सोचते-सोचते आनन्द तेज़ी से संकटेश्वर की बावड़ी की ओर चला। इस समय भी वहाँ सन्नाटा था। महालय में सब लोग युद्ध-सज्जा में दौड़-धूप कर रहे थे। कोई शस्त्र सजा रहा था, कई सैनिक-टुकड़ियाँ इधर से उधर आ-जा रही थीं। अकेले-दुकेले सिपाही, सवार, प्यादे अपने रास्ते आ-जा रहे थे। आनन्द का ध्यान इन सबसे हटकर संकटेश्वर की बावड़ी में लगा था। बावड़ी पर आकर वह चुपचाप एक सीढ़ी पर बैठकर जल की हिलती हुई लहरों को देखने लगा। बहुत से विचार उसके मस्तिष्क में आए। आज अमीर युद्ध नहीं कर रहा है, सिद्धेश्वर उस युवक से संकेत पाकर यहाँ आकर लोप हो गया है। इन दोनों बातों में कोई सम्बन्ध है या नहीं। आनन्द यही सोच रहा था। दोपहर हो गया। सूर्य का प्रखर तेज बढ़ गया। भूख-प्यास, थकान उसे सता रही थी। उसे विश्राम की अत्यन्त आवश्यकता थी। इसी समय उसे जल में कुछ हलचल प्रतीत हुई। क्षणभर ही में जल में से एक सिर निकला। यह देख आनन्द बिजली की भाँति फुर्ती से भूमि पर एक पत्थर के ढोके की आड़ में लेट गया। लेटे ही लेटे वह खिसक कर एक वृक्ष की आड़ में छिप गया। यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि सिध्देश्वर जल से बाहर आ रहा है। वह जल से बाहर आकर भारी- भारी डग रखता हुआ एक ओर को चला गया। आनन्द का मन एक बार उसका पीछा करने का हुआ, पर कुछ सोच कर वह ठिठक गया। वह बड़े ध्यान से बावड़ी के जल को देखने लगा। एकाएक उसने एक संकल्प मन में दृढ़बद्ध किया और वह वस्त्रों सहित जल में पैठ उसने चारों ओर दृष्टि डाली, कोई न था, वह बावड़ी के मध्य भाग में पहुँच गया, जहाँ कण्ठ तक जल था। साहस करके उसने पानी में गोता लगाया और बावड़ी के चारों ओर घूम गया। साँस फूल जाने से वह फिर बाहर आया। दूसरी बार और फिर तीसरी बार उसने गोता लगाया। इस बार उसे दीवार में एक छिद्र नज़र आया। छिद्र बहुत बड़ा था, गया।