पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२४४

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हमारा है" और इस कोमल भावुक तरुण के योद्धा प्राणों का मोह छोड़ छातियों की दीवार बनाकर द्वार पर अड़ गए। अमीर ने अपनी गति को अवरुद्ध देख द्वार पर उन्मत्त हाथी हूल दिए। पर दद्दा चौलुक्य की तलवार उनसे भी नहीं झुकी। लोथों पर लोथ पाटकर दद्दा ने दो घड़ी बीतते-न-बीतते द्वार पर अधिकार कर लिया। द्वार बन्द होने पर वह घूमे और भीतर घुस आए शत्रुओं को गाजर-मूली की भाँति काटने लगे। दद्दा पर जो रणरंग चढ़ा, उसके प्रभाव से शत्रु आतंक से भयाक्रान्त हो पटापट गिरने लगे। एक बार फिर भीषण नाद हुआ–“हर-हर महादेव!”