पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२५४

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वे अपनी कसी हुई मुट्ठी में रेतियाँ लिए लुढ़क रहे थे। पुल पर हज़ारों मनुष्य, और पदातिक चढ़ गए थे। उस पर बोझ बहुत पड़ गया था। इसी समय तड़तड़ा कर जंजीरें टूट गईं। उधर पुल में आग लग गई। पुल टूट गया। राजपूत हर्ष से चिल्ला उठे, “हर-हर महादेव!" परन्तु इसी क्षण अन्तर्कोट के भीतर से दिल को थर्रा देनेवाला निनाद उठा, "अल्लाहो-अकबर” क्षण-भर के लिए राजपूत योद्धा थम गए। दामोदर जो मुग्ध होकर सोरठ के राव का पराक्रम निहार रहे थे, अब तलवार ऊँची करके अन्तर्कोट की ओर दौड़ पड़े।