पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२५५

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दो तलवारें न जाने किस अचिन्त्य विधि से संकटेश्वर की बावड़ी का जल एकाएक सूख गया। बावड़ी में कीचड़-ही-कीचड़ रह गया। उसी कीचड़ में से प्रथम एक, फिर दूसरा इसके बाद तीसरा, इस प्रकार एक के बाद एक अनगिनत सिर निकलने लगे-मानो दैत्य पाताल फोड़कर जन्म ले रहे हों। सबसे आगे रस्सों से बंधा सिद्धेश्वर था, और उसके पीछे नंगी तलवार हाथ में लिए फतह मुहम्मद। उसके पीछे अन्य तुर्क योद्धा। उनके विकराल शरीर कीचड़ और गन्दगी में लथपथ, वीभत्स भयानक प्रेतों के समान दीख रहे थे। भूमि पर पैर रखते ही बिना एक क्षण का विलम्ब किए फतह मुहम्मद ने तलवार का एक भरपूर हाथ सिद्धेश्वर की गर्दन पर मारा। उसका सिर भुट्टे के समान कटकर दूर जा गिरा। उसे सांस लेने का भी अवसर नहीं मिला। फतह मुहम्मद ने तलवार ऊँची करके कहा, “यह हमारी पहली किस्त है।” उसकी तड़पती हुई लाश को वहीं छोड़ वे सब प्रेत-मूर्तियाँ वृक्षों और दीवारों की आड़ में नि:शब्द गणपति-मन्दिर की ओर बढ़ीं। गणपति-मन्दिर के प्रांगण को बगल में छोड़, वे सब चुपचाप महाकाल भैरव के विशाल चौक तक आ गईं। युद्ध का शोर यहाँ तक सुनाई पड़ रहा था, परन्तु युद्ध का यहाँ और कुछ भी प्रभाव न था। सामने ही रुद्रभद्र और उसके सैकड़ों वामाचारी चेले-चांटे और कलमुंहे लोग सहस्राग्नि- सन्निधान तप रहे थे। जहाँ तक दृष्टि जाती थी, धूनियां धधक रही थीं, उनमें बड़े-बड़े लक्कड़ जल रहे थे। सबके बीच में दैत्याकार रुद्रभद्र का काजल-सा काला शरीर अचल स्थिर आसीन था। फतह मुहम्मद बाज़ की भाँति इन पाखण्डियों पर टूट पड़ा। देखते-ही-देखते उसके बर्बर तुर्क-सैनिक उन पाखण्डी तपस्वियों को गाजर-मूली की भाँति काटने और धूनियों में झोंकने लगे। बाबा लोगों में भगदड़ मच गई। सब कलमुँहे, अघोरी वामाचारी अपनी- अपनी धूनी छोड़ जान ले-लेकर इधर-उधर,जहाँ जिसका सींग समाया, भाग निकले। पर फतह मुहम्मद ने ललकार कर कहा, “देखना, एक आदमी । इन शैतानों में से जिन्दा यहाँ न निकलने पाए।” कद्दावर तुर्क उन पर पिल पड़े और देखते-ही-देखते उन सबके टुकड़े रुद्रभद्र की सारी सिद्धियाँ और दिव्य शक्तियाँ हवा हो गईं। वह सूक्तों के पाठ भूल गया। और भय से डरता, काँपता, गिड़गिड़ाता हुआ फतह मुहम्मद के पैरों पर गिरकर कहने लगा, “अरे देवस्वामी, मुझे पहिचान, मैं अमीर का दोस्त हूँ, अमीर का दोस्त। तू तुझे अमीर के पास ले चल, वह तुझसे प्रसन्न होगा। उसका मुझसे कौल-करार हो चुका है, मैं अमीर का दोस्त...” "तो ले, यह अमीर की तलवार है, इसका पानी पी!” उसने तलवार का एक भरपूर हाथ मारा और उस दैत्य का सिर भूमि पर लुढ़कने लगा। काजल के ढेर के समान उसके शरीर से खून की नदी बह चली। फतह मुहम्मद ने खून टपकाती हुई तलवार हवा में घुमाते हुए कहा, “बहादुरो, यह दूसरी किस्त है। आओ, अब अमीर नामदार का इस्तकबाल कर डाले।