पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२५६

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करने हम फतह दरवाज़े की ओर बढ़ें। याद रखो, हमारा एक-एक पल कीमती है, हमें सिर्फ दो घड़ी का वक्त है।" और वे अल्लाहो-अकबर का सिंहनाद करते हुए सिंहद्वार की ओर बढ़े, जिसे फतह मुहम्मद ने अभी से फतह दरवाज़ा कहना प्रारम्भ कर दिया था। यह उस गहरे आत्मविश्वास का फल था जो मुस्लिम सत्ता की सफलता का मूल कारण था। वह अन्तर्कोट की ओर गली-कूचों को पार करता हुआ तेजी से बढ़ रहा था। राह में जो मिला, उसी के उसने दो टुकड़े कर दिए। वह मुख्य मन्दिर के परकोटे के द्वार पर पहुँचा, जहाँ कभी पहर- पहर पर चौघड़ियां बजती थीं, वहाँ इस समय सन्नाटा था। वह दीपस्तम्भों पर तिरस्कार की दृष्टि फेंकता हुआ सीढ़ी पर चढ़कर सभा-मण्डप में जा पहुँचा। जहाँ एक शूद्र के चरण कभी नहीं पहुँचे थे और जहाँ खड़े होकर देव-दर्शन करने की चेष्टा में एक बार उसे धाक्के देकर निकाल दिया गया था। सभा-मण्डप के पास ही रत्न-मण्डप था और उसके मूल में वह गर्भगृह था, जहाँ भगवान भूतपावन महाकाल सोमनाथ का ज्योतिर्लिङ्ग था। कदाचित् वह इस समय अपना कर्तव्य भूलकर ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन करने की इच्छा से रत्न-मण्डप की ओर बढ़ा। उसने सोचा, एक बार उस पत्थर के देवता को देखू तो, जिसे देखने का अधिकार सिर्फ इन ब्राह्मणों को ही है। परन्तु उसकी गति रुक गई। रत्न-मण्डप के द्वार पर नंगी तलवार हाथ में लिए अचल भाव से दामोदर महता निर्भय खड़े थे। दोनों तलवारें ऊँची हुईं और भिड़ गईं। बर्बर तुर्क अल्लाहो-अकबर का निनाद करते हुए तलवारें ले-लेकर दामोदर पर टूटे। वहाँ इस समय एक चिड़िया का पूत भी न था। दामोदर ने दो सीढ़ियाँ उतरकर मुस्कराते हुए कहा, “देवस्वामी, इस तलवार को पहचानते हो?" फतह मुहम्मद सहम कर दो कदम पीछे हट गया। उसके योद्धा भी किसी जादू से जड़ हो गए। जिसकी तलवार जहां थी, वहीं रही। फतह मुहम्मद ने अदब से सिर झुकाकर कहा, “पहचान गया जनाब, लेकिन ऐसी ही तलवार यह मेरे पास भी है। आप भी पहचान लीजिए।" दामोदर ने अपनी मुस्कान को और विस्तृत करके कहा, “ठीक है देव, तो ये दोनों तलवारें लड़ तो नहीं सकतीं?" “जी नहीं।" “और जिसके हाथ में यह तलवार है, उसके साथ तुम कैसा सलूक करोगे?" “जी, जहाँ तक तलवार का सवाल है, मुझे भी हक हासिल है कि मैं उससे बराबरी का सलूक करूँ। क्योंकि ऐसी ही दूसरी तलवार मेरे पास भी है। मगर आप बुजुर्ग और मुरब्बी हैं, मेरा फर्ज़ है कि मैं आपकी इज़्ज़त करूँ। मैं अमीर का हुक्म ज़रूर बजा लाऊंगा, मगर अमीर नामदार के बाद मुझपर आपका हुक्म बजा लाना फर्ज़ हो जाता है।' "और यदि ऐसा करने में तुम्हें खतरा उठाना पड़े?" "तो क्या हर्ज है, खतरे के डर से फतह मुहम्मद क्या फर्ज को तर्क करेगा?" "शाबाश बहादुर, तो क्या अमीर ने तुम्हें रत्न–मण्डप तक आने का हुक्म दिया है?" C G .