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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२७०

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- भी न थे। उनके शरीर में से बहुत-सा रक्त निकल गया था। अभी उनके जीवन की आशंका बनी थी। राजवैद्य उपचार कर रहे थे तथा भरुकच्छ और खम्भात से चिकित्सक बुलाए गए थे, जिनकी प्रतीक्षा हो रही थी। इसी समय फतह मुहम्मद के नेतृत्व में अमीर की सेना ने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। संकट-काल समुपस्थित देखकर दुर्ग के अधिवासियों ने एक छोटी-सी युद्ध-मन्त्रणा की। उस मन्त्रणा सभा में केवल तीन व्यक्ति थे। घायल और वृद्ध कमा लाखाणी, बालुकाराय और दामोदर महता। कुछ परामर्श हुआ। अन्तिम निर्णय के अनुसार दुर्ग कमा लाखाणी को सौंप दिया गया। आहत भीमदेव तथा दूसरे घायलों को लेकर महता और बालुकराय अत्यन्त प्रच्छन्न भाव से खम्भात को रवाना हो गए। यह कार्य ऐसे तुर्त-फुर्त और सावधानी से हुआ कि किसी को भी कानोंकान पता न लगा। कमानी ने आग्रहपूर्वक प्रायः सब लड़ने योग्य योद्धा महासेनापति भीमदेव के साथ खम्भात भेज दिए थे। अब शेष दोनों प्रवहण भी खम्भात रवाना कर दिए गए। दुर्ग में अब छोटी जाति के सौ-पचास मनुष्य और सौ योद्धा बच रहे थे। भोजन-सामग्री की भी दुर्ग में कमी थी। इससे कम-से-कम मनुष्यों को ही वहाँ रहने की व्यवस्था की गई। उन्हीं सौ योद्धाओं को लेकर वीरवर कमा लाखाणी सब बुओं पर चौकी पहरे की व्यवस्था करके तथा दुर्ग-द्वार भलीभाँति बन्द करके बैठ गए। उनकी गृद्ध-दृष्टि अब शत्रु की गतिविधि पर थी। दुर्ग अत्यन्त दृढ़ और अजेय था। समुद्र से घिरी तीन ओर की ढालू फिसलती हुई चट्टानों पर किसी भी तरह मनुष्य का चढ़ना सम्भव नहीं था। दुर्ग का मुख्य तोरण बहुत ऊँचा था और वहाँ तक पहुँचने के लिए तीन मील टेढ़ी-मेढ़ी पेंचीली पहाड़ी पगडंडी पर चढ़ना पड़ता था। जहाँ कठिनाई से केवल एक आदमी चल सकता था। घोड़ा-हाथी तो वहाँ जा ही न सकते थे। सारा पर्वत जंगली लता-पुष्पों-गुल्मों एवं कंटीली झाड़ियों से भरा था। किले के कंगूरों पर सौ धनुर्धर आक्रमणकारियों के विफल प्रयास का तमाशा देख रहे थे। इस समय समुद्र में ज्वार आ रहा था और अमीर की जल-युद्ध से अनभिज्ञ सेना समुद्र की तूफानी पर्वत-सी तरंगों की चपेट में उछल रही थीं। उसकी नौकाएँ उलट रही थीं; या दूर-दूर लहरों पर बिखर गई थीं। उसके साथ साहसी और कुशल मल्लाह भी नहीं थे। फतह मुहम्मद बहुत साहसी योद्धा था, परन्तु यहाँ उसे सफलता नहीं मिल रही थी। किसी तरह वह लहरों पर काबू नहीं पा रहा था। तीर तक नावों का पहुँचना सम्भव नहीं था। लहरें उन्हें पीछे फेंक देती थीं। अनेक नावें लहरों से उठाई जाकर चट्टानों से टकराकर चूर- चूर हो रही थीं। कुछ साहसी योद्धा नावों पर से तीर चला रहे थे, पर वे दुर्ग के इस ओर ही प्राचीर से टकराकर गिर रहे थे। दुर्गस्थ वीर उनका प्रयास देख-देखकर हँस रहे थे। सारी रात फतह मुहम्मद विफल प्रयास करता रहा। भोर होते-होते अमीर अपनी वीर वाहिनी लेकर दुर्ग के सामने आ डटा। समुद्र भी शांत हुआ और गुस्से में उबलता हुआ फतह मुहम्मद खीझ भरा-सा अमीर के सामने जा खड़ा हुआ। अमीर ने देखा, उसका सारा सैन्य-बल निरर्थक है। किले के फाटक पर पहुँचना सम्भव नहीं है और घेरा डालकर महीनों- वर्षों में भी किले का कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता।उधर अमीर के लिए एक-एक क्षण भारी हो रहा था। नीचे से कोई तीर किले तक नहीं पहुँच रहा था। एक-एक, दो-दो आदमी, जो उन बीहड़ पगडंडियों के रास्ते से दुर्ग-द्वार पर पहुँच रहे थे, वह दुर्ग से बरसते हुए तीरों से