पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२७२

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अट्ठासी तलवारें दिन बीतते चले गए, पर कुछ लाभ नहीं हुआ। एक-एक करके सात दिन बीत गए। दुर्ग में अन्न-जल केवल एक ही दिन का शेष रह गया। वृद्ध कमा लाखाणी ने वीरों को एकत्रित करके कहा, “भाइयों, खेद है कि समय ने हमारी सहायता नहीं की। हमने कितनी भूल की है कि दुर्ग में यथेष्ट अन्न-जल का प्रबन्ध नहीं किया। परन्तु अब भू-प्यास से तड़पकर मरने का क्या लाभ है? और दो दिन बाद यदि हमने साहस किया तो हमारा बल आधा रह जाएगा। भूख-प्यास से हम जर्जर हो जाएंगे। इससे चलो, अपने हिस्से का शेष कार्य आज ही, अभी पूरा कर दें। शत्रु की सेना पर प्रबल पराक्रम से टूट पड़ें, और वीरगति प्राप्त करें।" उसने गिनगिनाकर कहा, “हम अट्ठासी वीर हैं। सब स्वस्थ हैं, सबके पास शस्त्र हैं, फिर विलम्ब काहे का? चलो, अपने-अपने प्राणों का मूल्य चुकाएँ। वीरवर सोरठ के राव धर्मक्षेत्र में तिल-तिल कट मरे, अब आज हम भी उनकी राह चलें।" वीरों ने दर्प से हुँकार भरी। सभी ने अपना अन्तिम भोजन डटकर किया। जो खाद्य-सामग्री बची, उसे नष्ट कर दिया। जल भी सुखा दिया। कुआँ पाट दिया और अपने- अपने घोड़ों पर सवार हो दुर्ग-द्वार खोल दिया। एक-एक वीर बाहर निकला। सबसे आगे वीरकर कमा लाखाणी अपनी सफेद दाढ़ी फहराते चले। उनके पीछे अन्य योद्धा। अमीर ने सोचा, क्या सचमुच वे आत्म-समर्पण कर रहे हैं। उसने सेना को सज्जित होने की आज्ञा दी। घोड़े पर सवार वह सेना के आगे खड़ा हुआ। राजपूत नीरव और नि:स्तब्ध नीचे आ रहे थे। उनकी तलवारें नीची थीं। अमीर ने एक भी तीर न छोड़ा। दोनों सेनाएँ केवल एक तीर के फासले पर आमने-सामने खड़ी हो गईं। परन्तु एक तरफ बीस हज़ार सज्जित सेना थी और दूसरी ओर केवल अट्ठासी नर-व्याघ्र | अमीर ने ललकार कर कहा, “क्या गुजरात का राजा हमारे ताबे हुआ?" उत्तर में वीर कमा लाखाणी ने अपनी तलवार छाती से लगाई। घोड़े को ज़रा आगे बढ़ाया और हवा में फहराती हुई अपनी धवल दाढ़ी की छटा दिखाते हुए कहा, “यदि तू ही गज़नी का अमीर है तो हमारे पास अट्ठासी तलवारें हैं, ले, एक-एक गिन!" उन्होंने तलवार ऊँची की। घोड़े को एड़ मारी। काठियावाड़ी पानीदार घोड़ा हवा में उछला और सीधा अमीर पर टूट पड़ा। अमीर फुर्ती से बगल में दब गया, और कमा लाखाणी की तलवार, जो अमीर के सिर को लक्ष्य कर चुकी थी, उसके घोड़े के मोढ़े पर पड़ी। अमीर अवाक् रह गया। वीर धुरन्धर कमा और उसके अट्टासी योद्धा इस तरह उस महासैन्य की चीरते चले गए, जैसे खरबूजे को चाकू चीरता है। वे सेना के मध्य भाग तक पहुँच गए। चारों ओर मुँह करके वृद्ध कमा लाखाणी को केन्द्र में रखकर वे चौमुखी तलवार चला रहे थे। क्षण-क्षण पर तेज़ी से उनकी संख्या कम होती जा रही थी, पर उससे अधिक तेज़ी से वे अपनी राह निकाल रहे थे। सेना के समुद्र को वे अट्ठासी वीर इस प्रकार पार कर रहे थे, जैसे मगरमच्छ पानी को चीरता जा रहा हो। शत्रु हैरान थे और अमीर विमूढ़ बना इन वीरों के शौर्य को देख रहा था। अन्त में वे