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फिर अनगिनत। देखते-ही-देखते कुहराम मच गया। अभी कुछ क्षण पूर्व जहाँ का वातावरण स्वच्छन्द आनन्द एवं कोलाहल से परिपूर्ण था, वहाँ अब वह भय, वेदना और हाय-हाय के भयानक चीत्कारों से भर गया। हँसते-बोलते, खेलते-कूदते आबाल-वृद्ध नर-नारी कटने- मरने, चीखने-चिल्लाने और प्राण लेकर जहाँ जिसका सींग समाया भागने लगे। किसी को किसी की सुध न रही। सैकड़ों अबोध बालक घोड़ों की टापों से कुचल कर चटनी हो गए। अनेक कुल-बालाओं को इन दैत्यों ने जीवित ही पकड़कर अपने घोड़ों से बाँध लिया। कुछ साहसी जनों ने जो हाथ लगा, उसी से सामना किया, तो उन्हें तत्क्षण टुकड़े-टुकड़े होकर मृत्यु की शरण लेनी पड़ी। इस प्रकार वह सम्पूर्ण आनन्दोत्सव मृत्यु, विनाश और रक्तपात में डूब गया।