में है!" तीसरे ने कहा, "हुण्डी कर सकते हैं, पर वह राक्षस मानेगा क्यों! उसे तो नकद ही चाहिए। बिना नकद दिए छुटकारा नहीं है।" शुभकरण सेठ खम्भात के सेठों का चौधरी था। उसने कहा, “एक करोड़ कोरी मैं दे सकता हूँ।" त्रिलोकचन्द ने कहा, “दस लाख मैं।" लखपत के एक सेठ ने कहा, “मुझे समय मिले तो दस लाख कोरी मैं दूंगा। पर यहाँ नहीं, लखपत से मँगाकर दे सकता हूँ।" दामो महता चुपचाप सुनते रहे। फिर उन्होंने आकर कहा, “ सेठियाओ, आज्ञा हो तो मैं भी कुछ कहूँ। मैं भी आपकी इस विपत का साथी हूँ। आप भले ही पाँच करोड़ कोरी उस दैत्य के मुँह में डाल दें, परन्तु कोरी लेकर भी वह विश्वासघात करे, आपको न छोड़े तो? भला उस म्लेच्छ शत्रु की ज़मानत कौन देगा?” दामो की बात सुनकर सब सेठों के कान खड़े हो गए। सबने कहा, “ठीक तो है। दुष्ट विश्वासघात न करेगा, इसका क्या ठिकाना है। तब आप ही बताइए, क्या किया जाए?" “सीधी बात है, शत्रु को दण्ड नहीं दिया जाएगा, परिणाम चाहे जो कुछ हो। अभी तो हमें आत्म-रक्षा के जो उपाय सम्भव हों, अपनाने चाहिएँ। आप यदि सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दें, तो मैं आपकी रक्षा का जिम्मा लेता हूँ।" दामोदर की इस बात से सबको ढाढ़स बंधा। सबने कहा, "आप जो कहेंगे, हम वही करेंगे। "तब ठीक है, अब सब बातों का जवाब आपका प्रतिनिधि होकर मैं ही शत्रु को दूंगा। आप शान्त होकर बैठिए।" अभी यह सलाह हो ही रही थी कि अमीर के बलूची सेनानायकों ने आकर कहा, “सेठियो, अब तुम क्या कहते हो? दाम देते हो, या फिर तुम्हारी सबकी गर्दन मारी जाए?" दामोदर ने कहा, "हमें रातभर सोचने का समय मिले।" वह सोच रहे थे। बालुकाराय और सामन्त के युद्ध-कौशल का क्या परिणाम होता है यह देख लिया जाए। परन्तु उद्दण्ड बलूची सरदार ने कहा, “नहीं, नहीं, इतना समय नहीं दिया जा सकता, जो कुछ कहना है, अभी कहो-नहीं तो अभी तुम सबकी गर्दन मारी जायगी।" “अभी कहाँ से रुपया आएगा? रुपया क्या हमारी जेब में है? फिर, गर्दन मारने से ही तुम्हें काम है तो वही करो। पर हमें जो कुछ देना-लेना है, रातभर में सोचेंगे, बन्दोबस्त करेंगे, तब होगा।' सरदार कुछ सोच-समझ कर चला गया। सेठियों ने कहा, “इससे क्या लाभ, जो सुबह कहना था, वह अभी क्यों न कह दिया गया?" महता ने कहा, "तेल देखो, तेल की धार देखो!" "
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