शोभना का सख्य अभी गुप्तगृह में गए महाराज भीमदेव को कुछ क्षण ही व्यतीत हुए थे कि सोलह हाथ ऊँची दीवार को फाँद, हाथ में रक्त-भरी नंगी तलवार लिए फतह मुहम्मद आँगन में कूद गया। सामने शोभना को देखकर उसने हाथ की तलवार ऊँची कर कहा, “शोभना, मैं आ गया!" हर्ष से वह फूल रहा था। यद्यपि शोभना को क्षण-क्षण में उसके आने की सम्भावना थी, परन्तु इस समय इस रूप में उसे वहाँ देखकर उसकी चीख निकल गई। क्षण-भर तो वह सकते ही हालत में खड़ी रही। फिर दूसरे ही क्षण वह सब परिस्थिति भाँप गई; उसने आँखों ही के संकेत से चौला को भीतर जाकर भीतर से कक्ष का द्वार बन्द करने को कहा, और आप हाथ की तलवार वहीं फेंक बाहर आ द्वार से अड़कर खड़ी हो गई। फतह मुहम्मद ने कहा- “मैं आ गया शोभना!" “मैं तुम्हारी प्रतीक्षा ही कर रही थी।" "अब प्रतीक्षा की बेला समाप्त हुई, शोभना, अब तो मिलन का क्षण आ गया, अब मुझसे तुम्हें कौन छीन सकता है?" “परन्तु ग़ज़नी का वह दैत्य?" "अमीर, अमीर ने मुझे अपना सेनापति बनाया है शोभना, और आज मैं अमीर से सबसे बड़ा इनाम लूंगा।" “किन्तु वह धर्म, देश और मनुष्यों का शत्रु है?" “परन्तु हमारा मित्र है। अब विलम्ब न करो, मेरी चीज़ मेरे हवाले करो।" "कैसी चीज़?" "जिसकी देखभाल का काम मैंने तुम्हें सौंपा था।" “चौला रानी?" "हाँ, वह यहीं है, मैं उसकी झलक देख चुका हूँ।" “तुम्हें, बड़े लोगों के सम्बन्ध में मर्यादा से बात करनी चाहिए।" "ओह, वह अभी तो मेरी बन्दिनी है। अलबत्ता, जब अमीर की बेगम बन जाएगी, तब मर्यादा से बात करूँगा।" वह हँसा, और तलवार हवा में ऊँची की। "देवा, यह तुम अमीर के दास के समान बोल रहे हो।" "दास क्यों? मैं अमीर का सबसे बड़ा सिपहसालार हूँ। आज की यह कठिन मुहिम मैंने सर की है। सोमनाथ मैंने सर किया, और अमीर जिसे सबसे बड़ी दौलत समझता है, वह क्या है, जानती हो?" “क्या है?" "चौला! वह दौलत उसकी गोद में डालकर मैं आज आधी दुनिया की बादशाहत अमीर से लूँगा। शोभना, अब तुम अपने को किसी महारानी से कम न समझना।" “देवा, तुम तो बड़े-बड़े सौदे करने लगे।"
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२९७
दिखावट