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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२९८

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“यह इस तलवार की बदौलत शोभना, और तेरी इन आँखों के जादू की बदौलत- जिनमें मुझे मारने और ज़िन्दा करने की ताकत है।" "लेकिन देवा, देखती हूँ, तुमने सबसे बड़ा सौदा भी कर लिया!" "कैसा?" “तुम अपने को भी बेच चुके!" "तो इससे क्या, उसकी कीमत कितनी मिली-जानती हो? शोभना, मेरी प्राणों से भी अधिक प्यारी चीज़ और एक बादशाहत।" “परन्तु देवा, एक दिन न शोभना रहेगी, न यह भीख में मिली बादशाहत। केवल तुम्हारे ये काले कारनामे रह जाएँगे।" “क्या कहा-भीख में?" नहीं गद्दारी,विश्वासघात,देश और धर्म के द्रोह के सिले में मिली बादशाहत।" "शोभना, यह तुम क्या कह रही हो, जानती हो-यह सब तुम्हारे ही लिए।" “इसी से तो, मैं शर्म से मरी जाती हूँ।" "तुम्हारी स्त्री-बुद्धि है न।” “स्त्री हूँ, तो मर्द की बुद्धि कहाँ से लाऊँ?" “खैर, अब देर हो रही है, बाहर मेरे सिपाही खड़े हैं, मेरी चीज़ मेरे हवाले करो।" “कौन सी चीज़?" "वहीं चौला देवी।" “किसलिए?" "उसे मैं अमीर नामदार को भेंट करूँगा।" "अमीर कहाँ है?" “पास ही है, इसी किले में।" "मेरी बात मानो देवा, तुम इतने बड़े बहादुर हो-मेरी खुशी का एक काम कर दो।" “शोभना की खुशी के लिए तो मैं अपना दाहिना हाथ भी काटकर दे सकता हूँ। कहो, क्या चाहती हो।" “उस दैत्य अमीर का सिर काटकर मुझे ला दो।" फतह मुहम्मद चमक कर दो कदम पीछे हट गया। उसने कहा, “हैं, यह कैसी बात!" क्या नहीं कर सकते? जिसका पेशा लूट-हत्या,धर्मद्रोह,अत्याचार और अन्याय है, जो लाखों मनुष्यों की तबाही का कारण है, जो मृत्युदूत की भाँति सत्रह बार भारत को तलवार और आग की भेंट कर चुका, वह इस क्षण तुम्हारे हाथ में है, चंगुल में है, जाओ, अभी उसका सिर काट लाओ-शोभना देवी की यही तुमसे आरजू है।" "नहीं, नहीं शोभना, यह नहीं हो सकता। मैं दास, अनाथ, अपमानित, बहिष्कृत देवा, उसकी कृपा से ही आज इस रुतबे को पहुँचा हूँ। भला मैं उसके साथ धोखा कर सकता “क्या शोभना के लिए भी नहीं?" 6