पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३०२

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शरणापन्न प्राणों से प्यारे देवा के खून से भरी तलवार से गर्म और ताज़ा खून की बूंदें टपकाती हुई शोभना उन्मादिनी की भाँति गिरती-पड़ती, दालान-अलिन्द पार करती हुई, उस कक्ष में पहुँची, जहाँ अकेली चौला, तलवार हाथ में लिए, भय, आशंका और उद्वेग से भरी बेचैनी से एक-एक क्षण काट रही थी। किले में बाहर जो मार-काट मची थी और शोर मच रहा था, उसकी जो आवाज़ दीवारों से छन-छन कर आ रही थी, वह उसे अधीर बनाए हुए थी। किस क्षण क्या होगा, नहीं कहा जा सकता था। शोभना को इस प्रकार के भयानक वेश में आते देख चौला दौड़कर उसके पास आई। शोभना के बाल बिखर रहे थे, होंठ सूख रहे थे और चेहरा सफेद मुर्दे के समान हो रहा था, आँखें भय से फट रही थीं। शोभना तलवार फेंक चौला के पैरों में गिर फफक-फफक कर रोने लगी। चौला देवी ने उसे अंक में भरकर अनेक भाँति सान्त्वना दी। वह यह तो समझ गई कि कोई अघट घटना घटी है, पर हुआ क्या, यह जानने को बारम्बार उसे प्रबोध करने लगी। शोभना अर्ध-मूर्च्छित अवस्था में उसकी गोद में पड़ी बड़बड़ाने लगी। चौला ने झारी से शीतल पानी लेकर उसके कण्ठ में डाला और आँखों पर छींटे दिए, फिर कहा, “कह बहिन, हुआ क्या?" शोभना ने होंठों ही होंठों में फुसफुसाकर कहा- “मैंने उसे मार डाला देवी, उसका सिर काट लिया, उसी की तलवार से।" "किसका? किसका?" पर शोभना ने सुना नहीं। वह मूर्च्छित हो गई। चौला देवी बहुत व्यग्र हो गईं। सहायता के लिए किसे पुकारा जाए। कक्ष में एक भी आदमी न था। परन्तु समय पर साहस का आप ही उदय हो जाता है। चौला ने किसी तरह शोभना को प्रबोध किया। होश में आकर शोभना आँखें फाड़-फाड़कर चारों ओर देखने लगी, फिर रोते-रोते चौला की गोद में गिर गई। धीर-धीरे उसने अपने हृदय की गुत्थी खोली। देवा का परिचय, उससे प्रेम- भावना और उसका घर से भागना, मान होना, छिपकर मिलना, सब-कुछ बता दिया। अपने मन की आसक्ति भी न छिपाई। उसे उसी ने चौला देवी पर अमीर की ओर से जासूसी करने पर नियत किया था यह भी कहा। और अन्त में यह भी कह दिया कि किस प्रकार उसे देवी से प्रेम हुआ, और उसी प्रेम और कर्तव्य पर उसने आज निरुपाय हो अपने प्यारे का सिर काट डाला। सब सुनकर चौला जड़ हो गई। बहुत देर तक वह निःस्पन्द शोभना को वक्ष से लगाए बैठी रही। फिर कहा, “सखी, तूने तो वह किया, जिसका उदाहरण नहीं। मेरे लिए तूने अपना ही घात कर डाला। “आपके लिए नहीं देवी, अपने प्यार के लिए, जो मेरे मन में देवा के लिए था। अभी भी जो वैसा ही है। उस दासी-पुत्र ने उसी का सौदा कर डाला था, उसे मैंने आज कलंकित होने से बचा लिया। और अब मैं आपकी शरणापन्न हूँ।" उसने अपने को चौला की गोद में डाल दिया। चौला ने उसे उठाकर हृदय से लगा