पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३०९

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66 नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" "इतनी ज़ालिम न बनो मलिका।" "खुदा के बन्दे महमूद को नाउम्मीद होने की ज़रूरत नहीं, तलवार उठा लीजिए। और इस बेअदब औरत का सिर धड़ से अलग कर दीजिए। और यदि आप एक गरीब औरत को मार कर अपनी यशस्विनी तलवार को कलंकित करना नहीं चाहते, तो जल्लादों को बुलवाइए, वे अपना काम करें। और दुनिया देखे कि खुदा के बन्दे अमीर महमूद के प्यार को ठुकराने की सज़ा क्या है।" महमूद के मुँह से जवाब नहीं निकला। वह घुटनों के बल झरोखे के सामने भूमि पर बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह दोनों हाथों से मुँह ढांप कर ज़ार-ज़ार रोने लगा। शोभना का हृदय पसीजा। वह आसन छोड़कर खड़ी हुई। उसने कहा, “उठिए, शहंशाह, मैं कुछ निवेदन करना चाहती हूँ। अमीर ने मुँह उठाया, गर्म आँसुओं से उसकी दाढ़ी भीग रही थी। आहत पशु की भाँति उसने झरोखों से उस लावण्य-सुधा को देखकर अस्पष्ट ध्वनि की। “सुलतान गज़नी को ऐसा कातर नहीं होना चाहिए।" इस पर महमूद ने लड़खड़ाती भाषा में कहा, “जानेमन, प्यार की इस चोट से मैं अब तक बेखबर था। आज देखता हूँ, जैसे मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी ही बरबाद की। अब अगर तुम्हारा प्यार निहाल न करेगा, तो खुदा का बन्दा महमूद ज़िन्दा नहीं रह सकता है।" लेकिन खुदा के बन्दे महमूद ने कभी मेरा प्यार नहीं चाहा। मुझे चाहा। वह भी फतह करके, तलवार और ज़ोर-जुल्म से। अब जितना जोर-जुल्म किया जा सकता था, हो चुका। गुजरात की हरी-भरी भूमि खून से लाल हो चुकी। गुजरात के प्रभु सोमनाथ का दरबार भंग हो गया। न जाने कितने हौसले वाले प्राणों का संहार हुआ। न जाने कितनी कुल-वधुएँ विधवा हुईं। खुदा के बन्दे अमीर महमूद ने जो आग गुजरात के घर, गाँव, नगरों में लगाई है, उसे बुझाने को आज गुजरात की लाखों अबलाएँ ज़ार-ज़ार आँसू बहा रही हैं। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि इन आँसुओं को, उस आग को बुझाने में कितने दिन लगेंगे। अब हुजूर से इस अभागिनी दासी का यही निवेदन है, कि प्यार के सौदे की बात तो रहने दीजिए। आप देखते ही हैं कि मैं अकेली हूँ, मेरे पास दास-दासी कोई नहीं। रक्षक भी कोई नहीं। गुजरात के वीर आपकी तलवार की धार का पानी पी खेत रहे। और गुजरात का देवता भी आपने भंग किया। अब गुजरात की एक अबला का रक्षक कौन है... मैं अबला स्त्री हूँ। तुच्छ दासी हूँ। परन्तु खुदा के बन्दे अमीरे-गज़नी की भाँति कातर होना पसन्द नहीं करती। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि प्यार के कारबार की बात अभी रहे। आपने मेरे प्यार को न सही, मुझे तो प्राप्त कर ही लिया। मुझे बन्दिनी कीजिए। और फिर जैसी हूजूर की मर्जी हो, इस धृष्टा बन्दिनी के साथ व्यवहार कीजिए। अमीर ने भर्राए हुए कण्ठ से कहा, “ऐ नाज़नीं, तूने महमूद की तरह प्यार का घाव नहीं खाया, इसी से ऐसा कहती है। लेकिन मैं, खुदा का बन्दा महमूद, वही कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। मैं हुक्म देता हूँ कि इस नाज़नीं के साथ एक मलिका की भाँति सलूक किया जाए। और वह समझ ले कि ग़ज़नी का सुलतान उसके प्रत्येक हुक्म को बजा लाने के लिए . CG "