पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३१

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का सामर्थ्य है।"

बहुत देर तक कुमार भीमदेव गंग सर्वज्ञ की इस ज्ञान-गरिमा को समझते रहे। फिर बोले, "तो देव, गज़नी का सुलतान यदि सोमपट्टन को आक्रान्त करे तो हमारा क्या कर्त्तव्य हैं?"

"जिस अमोघ सामर्थ्य की भावना से तुम देवता से अपनी रक्षा चाहते हो, उसी अमोघ सामर्थ्य से देव-रक्षण करना।"

"परन्तु वह अमोघ सामर्थ्य क्या मनुष्य में है?"

"और नहीं तो कहाँ है? बेटे! मनुष्य का जो व्यक्तित्व है वह तो बिखरा हुआ है, उसमें सामर्थ्य का एक क्षण है। अब, जब मनुष्य का समाज एकीभूत होकर अपनी सामर्थ्य को संगठित कर लेता है, और वह उसका उपयोग स्वार्थ में नहीं, प्रत्युत कर्तव्य-पालन में लगाता है, तो यह सामर्थ्य-समष्टि मनुष्य की सामर्थ्य होने पर भी देवता की सामर्थ्य हो जाती है। उसी से देव-रक्षण होगा।"

"परन्तु यदि लोग उपेक्षा करें, अपने-अपने स्वार्थ में रत रहें?"

"तो देवता की सामर्थ्य भंग होगी, तब प्रथम देवता अन्तर्धान होगा, फिर देव-अरक्षित कोटि-कोटि जन दु:ख-ताप से पीड़ित हो दुःख भोगेंगे। जनपद-ध्वंस होगा।"

"तब प्रभु, मुझ अज्ञानी को आप यह आदेश दीजिए कि मैं क्या करूं। आज मैं आपके चरणों में प्रतिज्ञा करता हूँ कि यदि यह दुर्दान्त भारत-विजेता भगवान सोमनाथ को आक्रान्त करेगा तो मैं इसी तलवार से उसके दो टुकड़े कर दूँगा।"

"पुत्र! इस 'मैं' शब्द को निकाल दो। इससे ही 'अहं-तत्त्व' उत्पन्न होता है। कल्पना करो, कि तुम्हारी भाँति ही दूसरे भी इस 'मैं' का प्रयोग करेंगे, तो प्रतिस्पर्धा और भिन्नता का बीज उदय होगा। सामर्थ्य का समष्टि-रूप नहीं बनेगा।"

"तो भगवन्! हम कैसे कहें—?"

"ऐसे कहो पुत्र, कि यदि कोई आततायी देव की अवज्ञा करेगा तो भारत उसे कभी सहन न करेगा।"

"तो प्रभु, यही सही।"

भीमदेव आगे और भी कुछ कहना चाह रहे थे कि इसी समय गंगा घबराई हुई आई, उसने कहा, "प्रभु, चौला आवास में नहीं है..."

"आवास में नहीं है तो कहाँ है?" सर्वज्ञ ने जिज्ञासा प्रकट की।

"यह मैं नहीं जानती, परन्तु मुझे सन्देह है...।

गंग सर्वज्ञ अस्थिर हो गए। उन्होंने व्यग्र हो उठते हुए कहा, "कुमार, तुम मेरे साथ आओ।" और एक गुप्त गर्भमार्ग द्वारा त्रिपुरसुन्दरी के मन्दिर की ओर लपके और उनके पीछे नंगी तलवार हाथ में लिए कुमार भीमदेव भी।