पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

भैरवी—चक्र

 

रुद्रभद्र पैर पटक-पटक कर इधर-उधर घूमने लगा। मद्य की झोंक में उसके पैर सीधे नहीं पड़ रहे थे। आँखें अधमिची हो रही थीं। वह रह-रह कर कोई अघोर मन्त्र बड़बड़ा रहा था। इसी समय दैत्य के समान दो अशुभदर्शी व्यक्तियों ने वस्त्रों में लिपटी हुई वस्तु उसके चरणों में लुढ़का दी। रुद्रभद्र ने भारी कण्ठ से कहा—

"निर्माल्य मिला?"

"मिला।"

उसने आवेष्टन हटाया, मूर्च्छित चौला की देह-यष्टि उसमें से निकल पड़ी। उसके शरीर पर वही नृत्य की पोशाक थी। कड़ी मूर्छा के कारण उसका मुख पीला हो रहा था, पर इस समय भी वह वही पारिजात-पुष्पगुच्छ की श्री धारण कर रही थी। रुद्रभद्र के मद्य-घूर्णित नेत्रों के भारी-भारी पलक तृषित हो उठे।

उसने कहा, "जृम्भिक, उसे अमृत दे।" जृम्मिक ने मद्य का पात्र मूर्छित चौला के मुख से लगा दिया। श्वास के साथ ही मद्य उसके कण्ठ में उतरने लगा। रुद्रभद्र ने वहीं भैरवी चक्र रचा। भैरवी चक्र पर चौला की बेसुध देह रखी गई। फिर उसने उसके निकट ही आसीन होकर आज्ञा दी, "पूजन-विधि सम्पन्न करो अब।"

चौला को नग्न कर दिया गया। उसके विविध अंगों का पूजन-मार्जन होने लगा। बीच-बीच में मद्य भी उसके मुख में डाली जाने लगी। रुद्रभद्र तन्त्र-क्रिया सम्पन्न करने लगा। संकेत होने पर कपाट खोल दिए गए। सब साधक-साधिकाएँ कक्ष में घुस आईं। सब दिगम्बर नग्न थे, सबके हाथ में मद्य-पात्र थे। एक-एक स्त्री और एक-एक पुरुष मिथुन मुद्रा से विशेष पद्धति पर मन्त्र-पाठ करता हुआ चौला की नग्न मूर्छित देह को चारों ओर से घेरकर नृत्य करने और मद्य पीने लगा। बहुत लोग पीते-पीते वमन करने लगे, बहुत निर्लज्ज-अश्लील चेष्टाएँ करने लगे, बहुत बदहवास होकर भूमि पर ही लोट गए। उसी समय चौला की मूर्छा टूटी। अपने सम्मुख अकल्पित-अतर्कित यह भयानक दृश्य देखकर उसके मुख से चीख निकल गई, मूर्छा और मद्य के प्रभाव से उसकी चेतना विकृत हो रही थी। फिर भी उसने अपने नग्न शरीर को देख लज्जा से अंग समेट लिए। परित्राण पाने के लिए वह इधर-उधर देखने लगी। चारों ओर निर्लज्ज नग्न स्त्री-पुरुष मिथुन-योग से उसके चारों ओर घूम-घूमकर कवच-पाठ कर रहे थे। रुद्रभद्र मुद्रा-योग में सम्मुख आसीन था। इन सब निर्लज्ज और वीभत्स स्त्री-पुरुषों तथा दैत्य के समान भीमकाय रुद्रभद्र को सम्मुख नग्न बैठा देख, चौला ने भय से दोनों हाथों से आँखें बन्द कर लीं।

खम्भे में बन्धा हुआ युवक यद्यपि गहरे नशे में था, परन्तु अपने लाए निर्माल्य की विपत्ति देख उसने छूटने को बहुत हाथ-पैर मारे, परन्तु वह बन्धन नहीं तोड़ सका। सोमा बार-बार मद्य पीकर खिलखिलाकर हँसने और मद्य पात्र उसके मुँह के पास ले जाने लगी, परन्तु उसने फिर मद्य नहीं पी। आवेग से उसके मस्तिष्क और कण्ठ की नसें तनने लगीं।

हठात् युवक चिल्ला उठा, "जय स्वरूप! जय सर्वज्ञ! जय देव! जय गुरु देव!"