सामन्त चौहान पाठकों को ज्ञात है कि सामन्त चौहान को अन्तिम समय में खम्भात का नगर सौंपा गया था। और जब गनगौर के मेले पर आक्रमण हुआ, तो वह अपनी सेना की एक टुकड़ी लेकर वहाँ लड़ने गया था। उसके साथ बहुत कम सिपाही थे। तथा मेले में अनगिनत स्त्री-बच्चे और निरीह नागरिक एकत्र थे। अमीर के बर्बर पशु, भेड़ियों की भाँति उन पर टूट पड़े थे। यह कोई युद्ध न था, निर्दय हत्याकाण्ड था। इस समय सामन्त ने वेग से शत्रुओं पर धावा बोल दिया। उसने बड़ा कठिन युद्ध किया। और उसका फल यह हुआ कि वह घावों से जर्जर होकर भूमि पर गिर गया। उसके ऊपर भी शत्रु, मित्रों की लोथें पड़ गईं। सामन्त की किसी ने सुध नहीं ली। वह वहीं अर्धमृत अवस्था में लोथों के नीचे दबा पड़ा रहा। रात्रि आई और गई। दिन निकला तब सामन्त को होश आया। परन्तु उसमें उठने की सामर्थ्य नहीं थी। उसने किसी प्रकार अपने ऊपर पड़े हुए मुर्दो को हटाया और सिर ऊँचा किया। प्यास से उसका कण्ठ सूख रहा था। पर जल वहाँ कहाँ था। थोड़ी ही देर में वह फिर मूर्छित हो गया। बहुत देर वह मूर्च्छित पड़ा रहा। और इस बार जब उसकी मूर्छा टूटी तो दो पहर दिन चढ़ चुका था। किले में मार-काट का शोर मच रहा था। स्पष्ट था कि शत्रु ने किला दखल कर लिया है। वह नहीं जानता था कि घायल महाराज, चौला देवी और शोभना का क्या परिणाम हुआ होगा। चौला देवी और महाराज भीमदेव के लिए उसके प्राण छटपटा उठे। पर बहुत चेष्टा करने पर भी वह उठकर खड़ा न हो सका। सिर पर प्रखर सूर्य तप रहा था। चारों ओर लोथें सड़ रही थीं। चील और गृद्ध मंडरा रहे थे। एक भी जीवित प्राणी न था। भूख और प्यास से उसके प्राण कण्ठगत हो रहे थे और सिर दर्द से फटा जा रहा था। घावों का रक्त अंग पर सूख गया था। घाव गन्दे होकर कसक रहे थे। उसने पूरा ज़ोर लगाकर अपना कन्धा उकसाया। उसने दूर एक स्त्री को लोथों के बीच फिरती पाया। कई बार पुकारने की चेष्टा करने पर ही उसके कण्ठ से आवाज़ निकली। स्त्री ने सुनकर मुँह उठाकर उधर देखा। वह आई। एक वृद्धा स्त्री थी, रोते-रोते आँखें गई थीं। उसने सहारा देकर सामन्त को उठाकर खड़ा किया, सामन्त कहा- "माँ, किसे ढूँढ रही हो?" "मेरा बेटा, तेरे जैसा था वीर।" "तो माँ, मुझे एक चूंट पानी कहीं से पिला दे, तो मैं भी तेरे पुत्र को ढूंढने में मदद करूँ।" वृद्धा का छोटा-सा फूस का घर पास ही था। वह ब्राह्मणी थी, उसका पुत्र महालय का पुजारी था। गनगौर का मेला देखने गया था। घर लाकर वृद्धा ने सामन्त को पानी पिलाया। फिर थोड़ा दूध भी दिया। उसके अंग साफ किए। घावों पर पट्टी बाँधी। इससे आश्वस्त होकर सामन्त ने कहा, “माँ, चलो, तुम्हारे लाल को ढूंढें, एकाध लाठी या बाँस का टुकड़ा हो तो मुझे दे दो।" “नहीं बेटा, तू बहुत कमज़ोर है, यहीं आराम कर, मैं जाती हूँ।"
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